by: k.madhwan
सरकार की अनदेखी और लापरवाही के कारण आज तक इस बस स्टैंड की हालत ज्यों के त्यों है।

रांची। राजधानी रांची का एक मात्र सरकारी बस स्टैंड आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। ओवरब्रिज के समीप स्थित इस सरकारी बस स्टैंड के भवन बेहद जर्जर स्थिति में है। स्थिति इतनी खराब है कि कभी भी इस भवन में हादसा हो सकता है। हालांकि कई बार सरकार के स्तर पर इसके जीर्णोद्धार की बात सामने आयी थी, लेकिन विभाग की अनदेखी और लापरवाही के कारण आज तक इस बस स्टैंड की हालत ज्यों के त्यों है। भवन खंडहर में तब्दील हो चुके है। सरकार जहां गांव-गांव पीने के लिए स्वच्छ पानी मुहैया करा रही है, वहीं राजधानी रांची के सरकारी बस स्टैंड में ना तो पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध है और ना ही बाथरूम की कोई व्यवस्था। जबकि कायदे से देखा जाए तो यहां यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिए।

वहां मौजूद कुछ यात्रियों से हमारे संवाददाता की बात हुई तो उन्होंने बताया कि “इस खंडहर भवन में अंदर जाकर टिकट काउंटर से टिकट लेने में डर लगता है कि कहीं छत उनके ऊपर न गिर जाए। मैं झारखंड सरकार से पूछना चाहता हूं कि यदि इस दौरान कोई हादसा हो जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? हादसे में सरकार मुआवजा तो दे देगी लेकिन किसी यात्री या यहां काम कर रहे कर्मियों की जान गई तो क्या सरकार उनकी जान वापस ला सकती है क्या? यदि सरकार भवन का जीर्णोद्धार करने में सक्षम नहीं है तो कम से कम टिकट काउंटर बाहर बना दे, ताकि कोई भी अप्रिय घटना होने से बचा जा सके।”

आपको बता दें कि इस सरकारी बस स्टैंड का शिलान्यास 1965 ई. के आसपास हुआ था और 1975 के आसपास यहां भवन बना था। तब से लेकर आज तक इसकी मरम्मत नहीं हुई है। मरम्मत के अभाव में इस बस स्टैंड के भवन कमजोर होते जा रहे हैं। बस परिवहन से जुड़े यहां जो भी कर्मचारी काम करते है, वह अपनी जान जोखिम में डालकर अपना जीवन निर्वहन कर रहे हैं।

अब देखना ये है कि “जो कहते हैं, वह करते हैं” के स्लोगन वाली हेमंत सरकार सरकारी बस स्टैंड के टूटे-फूटे और जर्जर पड़े भवन का जीर्णोद्धार कराती है या फिर उस भवन को चुनौती देती है कि तुम पहले गिर जाओ, दो- तीन की जान ले लो। उसके बाद ही मैं कुछ करूंगा।
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