टंडवा (चतरा) मंगलवार को हजारों की संख्या में मौजूद भू-रैयतों ने फर्जीवाड़ा, धांधली, शोषण और अत्याचारों से उबकर अंचल का घेराव करते हुवे जोरदार नारेबाजी व शंखनाद किया उससे प्रशासन , प्रबंधन तथा सियासतदानों को समय शेष रहते अवश्य सबक लेनी चाहिए। केंद्राधीन विभिन्न परियोजना प्रबंधन चाहे वो सीसीएल हो या एनटीपीसी! उसके कई कुनीतियों के खिलाफ अब लोगों में भारी आक्रोश उमड़ रहा है। ये दृश्य इतना बताने के लिये काफ़ी है कि सत्ताधीशों व शासनतंत्र का संरक्षण लेकर विस्थापित -प्रभावित परिवारों के दमन से उन्हें अब और दबाया नहीं जा सकता। अपने पवित्र पैतृक संपदा खनन कंपनियों को देने से पूर्व भोले- भाले रैयतों ने शोषण, छल और फरेब का सहारा लेकर उनके साथ हो रहे धोखाधड़ी की कभी कल्पना हीं नहीं की थी।
जिसका फायदा उठाकर बहती गंगा में सफेदपोशों ने जमकर हांथ धोये। ताजा मामला एक बड़ा उदाहरण है भू-माफियाओं द्वारा सेंधमारी से अर्जित भूखंडों पर सीसीएल प्रबंधन ने नौकरी व मुआवजा की जमकर रेवड़ियां बांटे हैं! उक्त मामले में राजस्व विभाग के कर्मियों ने भी फर्जीवाड़े में बराबर की भूमिका निभाते हुवे दस्तावेजों का सत्यापन किया जबकि सत्ताधीशों व तमाम सियासतदानों ने चुप्पी साधकर उनका सहयोग। बड़े पैमाने पर हुवे राजस्व फर्जीवाड़े का नासूर अब यहां बड़ा घाव बन चुका है।
केंद्र व राज्य सरकार को व्यापक जांच कराते हुवे शीघ्र ऑपरेशन व मरहम लगाने चाहिए। हालांकि,अविश्वास की खाई को पाटना बिल्कुल हीं आसान नहीं है,जबतक यहां पारदर्शी व ठोस कार्रवाई ना हो ये कतई संभव नहीं है। बहरहाल, बहती अविरल यहां की गंगा में हांथ धोने के लिये कई शातिर अब भी कतार में खड़े हैं। सबसे पुराने कोल परियोजना के भू-रैयतों की पीड़ा अब जब सबके सामने छलकी है इससे सबक लेकर सतर्क रहें इसी में समझदारी है। विस्तारीकरण के लिये बेताब चंद्रगुप्त, संघमित्रा व अन्य कोल परियोजना प्रबंधन से भू-रैयतों को अब फूंक फूंककर कदम रखने की जरूरत है।
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