
हजारीबाग जिले के प्रखंड ईचाक के सुदूरवर्ती पंचायत डाड़ी घाघर का विभिन्न गांव सरकार के साथ साथ जिला प्रशासन के द्वारा किये जाने वाले विकाश के दावों को मुंह चिढ़ा रहा है। स्थिति ऐसी है कि आजादी के करीब 75 साल बीत जाने के बाद भी आज तक यहां विकास की किरण नहीं पहुंची है। यूं कहे तो राज्य बदला, सरकारे बदली, नेता और अधिकारी बदले, लेकिन नहीं बदली तो डाड़ी घाघर जैसे जिले के सुदूरवर्ती गांवों की दशा-दिशा और तस्वीर। आए दिन खाट पर गर्भवती व बीमार जैसे लोगों को इलाज के लिए 3 किलोमीटर पैदल यात्रा कर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है। कुछ ऐसी ही तस्वीर देर रात इस रास्ते में देखने को मिली। बता दे की पूरनपनिया गांव की रहने वाली गर्भवती महिला रेणु देवी को प्रसव पीड़ा से कहारती उसे 3 किलोमीटर सीधा ऊंची पहाड़ी रास्ते से खटिया के सहारे प्रसव के लिए अस्पताल ले जाना पड़ा।लोकतंत्र के महापर्व में अपने बहुमूल्य मतों से सरकार गठन में अहम भूमिका निभाने वाले इन गांव में निवास करने वाले ग्रामीण ना सिर्फ सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। बल्कि विकास योजनाओं से भी पूरी तरह महरूम है। इतना ही नहीं इन्हें अब विकास के नाम पर चिड़ सी होने लगी है। गांव की स्थिति यह है कि यहां सड़क है या सड़क में गड्ढे इसका अंत तक ढूंढना मुश्किल है। आवागमन के लिए ग्रामीणों को पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन पगडंडियों की भी स्थिति इतनी विकराल हो गई है कि लोगों को उस पर यात्रा करने से पूर्व भगवान के नाम का सहारा लेना पड़ता है। बारिश के मौसम में स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। घर से कहीं जाने को निकलने वाले ग्रामीणों को अस्पताल का चक्कर काटना पड़ता है।घर से बाहर पगडंडियों पर पैर रखते ही फिसलन के कारण वे या तो गिरकर गंभीर रूप से जख्मी हो जाते हैं या फिर गड्ढों या खेतों में समा जाते हैं। स्थिति यह है कि गांव में सड़क नहीं रहने की स्थिति में ग्रामीणों की जिंदगी भयावह हो गई है। यूँ कहें तो अब गांव का सिस्टम खाट पर ही सिमट कर रह गया है। गांव में सड़क नहीं रहने की स्थिति में ग्रामीणों को मामूली बीमारी में भी खाट के सहारे अस्पताल तक का यात्रा करना पड़ता है। ऐसे में या तो मौत हो जाती है या फिर भगवान ही एकमात्र सहारा होते हैं। दर्जनों बार ग्रामीणों ने गांव में सड़क निर्माण की मांग की लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। ऐसे में अब ग्रामीण आंदोलन का रुक अख्तियार करने के मूड में आ चुके हैं। यहां सिर्फ सड़क की कमी नहीं है। बल्कि सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और बिजली की भी यही स्थिति है। इस पूरे मामले पर जब क्षेत्र के निर्दलीय विधायक अमित कुमार यादव से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जब से यह क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन में आया है। तब से फॉरेस्ट क्लीयरेंस में काफी परेशानी आ रही है। जिसके कारण इस क्षेत्र का विकास अधर में लटका हुआ है। हम जल्द ही सरकार से यह मांग करेंगे कि क्षेत्र का विकास हो ताकि यहां के लोगों को खाट पर अस्पताल न जाना पड़े ।
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