साहेबगंज : साहेबगंज कहा जाता है कि महाभारत सिर्फ एक पुरानी कहानी नहीं, बल्कि हर युग में जब सत्ता और स्वाभिमान आमने-सामने होते हैं, तब कोई न कोई कुरुक्षेत्र बन ही जाता है। ठीक ऐसा ही दृश्य देखने को मिला झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में, जहां वीर सपूत सिद्धू और कान्हू की धरती पर हुल दिवस के अवसर पर इतिहास दोहराया गया — लेकिन इस बार लड़ाई अंग्रेजों से नहीं, बल्कि वंशजों और प्रशासन के बीच छिड़ी।
भोगनाडीह जहां हर वर्ष 30 जून को आदिवासी स्वाभिमान की सबसे बड़ी लड़ाई हुल आंदोलन की याद में सिर झुकाए जाते हैं, वहीं इस बार सिर घायल भी हुए। एक ओर सिद्धू-कान्हू के वंशज अपने हक, अपनी अस्मिता और सांस्कृतिक अधिकार को लेकर आवाज बुलंद कर रहे थे, तो दूसरी ओर खाकी वर्दी में प्रशासन व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश में तैनात था।
दृश्य कुछ ऐसा था, जैसे आधुनिक महाभारत का जीवंत चित्रण हो रहा हो — जहां वंशजों की ओर से तीर चलाए जा रहे थे और प्रशासन की ओर से आंसू गैस के गोले और लाठी बरस रहे थे। इस टकराव में 3 से 4 पुलिसकर्मी तीर लगने से घायल हो गए, वहीं कई वंशज और उनके समर्थक भी घायल हुए।
भीड़ और भावनाओं के इस विस्फोटक माहौल में यह डर गहराने लगा कि कहीं साहेबगंज के बांझी कांड की तरह फिर कोई खूनी संघर्ष की पटकथा न लिख दी जाए, जहां पुलिस और आदिवासियों के बीच तीर और गोलियों का मंजर आज भी लोगों की आंखों में बसा है। लेकिन सौभाग्यवश, ऐन वक्त पर दोनों पक्षों ने संयम का परिचय दिया। वरिष्ठ अधिकारियों और समाज के जिम्मेदार लोगों की पहल से मामला शांत हुआ। दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं और जनप्रतिनिधियों ने भी शांति बनाए रखने की अपील की, जिससे एक बड़ा टकराव टल गया।
इस घटना ने एक बार फिर याद दिला दिया कि हुल केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत चेतना है। अगर इस चेतना को सम्मान न मिले, तो आग बनकर फूट सकती है। सवाल यह नहीं कि तीर किसने चलाया और लाठी किसने चलाई… सवाल यह है कि सिद्धू-कान्हू की धरती पर क्या अब भी लोगों को अपनी पहचान के लिए लड़ना पड़ेगा? भोगनाडीह में जो हुआ, वह चेतावनी भी है और संदेश भी — कि इतिहास के वीरों को केवल याद करने से नहीं, उनके सपनों को सम्मान देने से ही असली हुल दिवस सार्थक होगा।
घटना में घायल पुलिस वंशज
इस घटना में प्रशासन की ओर से पुलिस जवान रमेश कुमार पासवान, छोटेलाल राम, संजय कुमार यादव, मृत्युंजय कुमार, श्याम यादव, दूसरी और झड़प के दौरान घायल वंशज परिवार उसके साथ ग्रामीण तथा रिश्तेदार जेठू मुर्मू, शिवचरण हांसदा, सुरजू टुडू, संगीता टुडू, माही बास्की, बिटिया हांसदा नेहा मुर्मू, देवराज किस्कू शामिल थे।
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