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झामुमो-कांग्रेसः संगठन की मजबूती की कवायद में दोनों के बीच बढ़ सकती है तकरार

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यह जगजाहिर हो चुका है कि झामुमो अगले विधानसभा चुनाव में जादुई आंकड़े को 41 तक पहुंचा देने के लिए अभी से जुट गया है। कांग्रेस भी इसी तरह की कोशिश में लगी है। विधायकों की संख्या बढ़ाने के साथ साथ वह झामुमो की बैशाखी को अपरिहार्य नहीं बनने देने की जुगत में जुटी है। इसको लेकर झामुमो की रणनीतिक चालें और कांग्रेस की ग्राउंड जीरो पर जी-तोड़ परिश्रम दिखायी पड़ रही है। इस क्रम में दिलचस्प यह भी है कि सरकार में साथ साथ रहनेवाले दोनों ही दल, एक ही मुद्दे पर अलग अलग आंदोलन कर रहे हैं। आवाज उठा रहे हैं। झामुमो आदिवासियत को प्रमुखता दे रहा है तो कांग्रेस ने एससी का अलाप छेड़ दिया है। सदन से लेकर सड़क तक,दोनों ही दलों की राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा और कश्मकश साफ साफ दिखायी दे रही है। सुनाई दे रही है।

वहां जोर, जहां कमजोर
झामुमो उन क्षेत्रों पर अभी से जोर लगा रहा है जहां काफी कमजोर रहा है। उदाहरण के रूप में लोहरदगा की सीट प्रमुख है। यह कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। बीच में 2009 के विधानसभा चुनाव में आजसू की टिकट पर कमल किशोर भगत चुनाव जीते थे। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी कमल किशोर भगत को सफलता मिली। हालांकि 2015 में डॉ केके सिन्हा से जुड़े एक मामले में सजा होने के कारण उनकी विधायिकी चली गयी। उसके बाद उनकी पत्नी नीरु शांति भगत किश्मत आजमायी। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली। लेकिन विभिन्न चुनावों में यह साफ संकेत मिला कि वहां कमल किशोर भगत का अपना जनाधार रहा है। नीरु शांति भगत अप्रैल 2025 में आजसू छोड़ झामुमो का दामन थाम ली है। कहीं न कहीं झामुमो लोहरदगा में एक जनाधारवाला उम्मीदवार तैयार करने में अभी से लग गया है। हाल में पाकुड़ से झामुमो के ही टिकट पर विधायक बननेवाले अकील अख्तर की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात के भी राजनीतिक मायने बताए जा रहे हैं। कयास लगाया जा रहा है कि अकील अख्तर झामुमो का दामन थाम सकते हैं। यहां मालूम हो कि पाकुड़ कांग्रेस के कद्दावर नेता आलमगीर आलम का गढ़ रहा है। यहां से वह कई बार विधायक बने। पिछले वर्ष उनके जेल जाने के बाद भी उनकी पत्नी 2024 का विधानसभा चुनाव जीती। अकील अख्तर इसलिए झामुमो छोड़ गए थे, क्योंकि यह सीट गठबंधन की राजनीति में चुनाव के समय कांग्रेस के खाते में चली जाती रही। इधर अकील अख्तर भी झामुमो छोड़ आजसू में गए। फिर 2024 के विधानसभा चुनाव से ठीक पूर्व उन्होंने आजसू का दामन छोड़ दिया। सपा की टिकट पर किश्मत आजमायी। सफलता नहीं मिली। इसलिए अकील अख्तर भी यह समझ चुके हैं कि विधानसभा में पहुंचने का सुगम रास्ता झामुमो के ही माध्यम से जाता है।

कोडरमा, धनबाद, पलामू, गोड्डा में भी झामुमो करने में लगा है घुसपैठ
राजनीति के जानकार सूत्र बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में झामुमो अपने को कमजोर मान रहा है, उसमें धनबाद, कोडरमा, पलामू का इलाका सबसे प्रमुख है। यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के पूर्व सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय की नजदीकी झामुमो के साथ बढ़ने लगी थी।  रवींद्र राय की मुलाकात भी हेमंत सोरेन से हुई थी। उनके झामुमो में जाने की चर्चा सामने आयी थी। हालांकि रवींद्र राय ने इसका खंडन किया था। आनन फानन में भाजपा ने उन्हें प्रदेश भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बना कर नाराजगी दूर करने में सफल हुई। लेकिन भाजपा की प्रदेश कमेटी के पुनर्गठन के बाद उन्हें फिर सम्मान नहीं मिला, तो उनका झामुमो के साथ नजदीकी बढ़ने से इंकार नहीं किया जा रहा। क्योंकि झामुमो उन्हें कोडरमा संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाने का ऑफर दे चुका है। धनबाद, झरिया में हमेशा कमजोर रहा झामुमो वहां के मेयर रहे शेखर अग्रवाल पर विधानसभा चुनाव के समय से ही डोरे डाल रहा है। लेकिन दोनों ही सीटें कांग्रेस के खाते में चले जाने के कारण अग्रवाल ने झामुमो में जाने वाला अपना पैर पीछे खींच लिया। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के पूर्व विधायक व मंत्री राज पालिवार पर भी झामुमो की नजर है। उन्हें भी झामुमो कहीं न कहीं गोड्डा संसदीय सीट के उम्मीदवार के रूप में तैयार करने की कोशिश कर रहा है। इसी तरह पलामू में भी खूब जोर लगा रहा है। पूर्व सांसद घूरन राम, उनके पुत्र के अलावा प्रभात भुईयां को जोड़ने में की जुगत में लगा है।

जेएससीए चुनाव और हटिया
झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में इस बार अजय नाथ शाहदेव को सरकारी समर्थन की बात सार्वजनिक हो चुकी है। इसके केंद्र में भी कहीं न कहीं हटिया विधानसभा क्षेत्र है। हटिया में अजय नाथ शाहदेव का अपना जनाधार रहा है। वह कांग्रेस की टिकट पर खड़े भी होते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की स्थानीय राजनीति के कारण उनके विधायक बनने का सपना पूरा नहीं हो सका। कहा जा रहा है कि सरकार के साथ उनकी जेएससीए चुनाव के दौरान बनी नजदीकी आनेवाले दिनों में गुल खिला सकती है। 
कांग्रेस भी लगा रही पूरा जोर
कांग्रेस भी झामुमो की रणनीतियों से वाकिफ बतायी जा रही है। वह भी झामुमो की बैशाखी के बल हमेशा चलने को तैयार नहीं दिखती। यही कारण है कि विधानसभा और लोकसभा में सीटों की संख्या में इजाफा के अलावा संगठनात्मक मजबूती के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। लगातार राजनीतिक कार्यक्रमों के माध्यम से वह जनता के बीच जा रही है। आज से लगातार छह दिनों तक प्रदेश प्रभारी प्रभारी के राजू और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष केशव महतो कमलेश राज्य के विभिन्न जिलों में आयोजित बैठकों और कार्यक्रमों में भाग लेंगे। विभिन्न जिलों में जिला अध्यक्षों, जिला पर्यवेक्षकों, यूएलबी पर्यवेक्षकों, प्रखंड अध्यक्ष व प्रखंड पर्यवेक्षकों के साथ बैठक करेंगे। संविधान बचाओ अभियान को भी आगे बढ़ाएंगे। कांग्रेस सरना धर्म कोड के अलावा पेसा पर भी फोकस कर सकती है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस अलग अलग विषयों व मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रही है। कांग्रेस के प्रभारी लगातार झारखंड प्रवास कर रहे हैं। कांग्रेस भी दूसरे दलों के नेताओं को अपने में समेटने में लगी है।

झामुमो आदिवासियत तो कांग्रेस ने एससी का राग अलापा
एक ही मुद्दे पर झामुमो और कांग्रेस के आंदोलन की राह अलग अलग है। सरना धर्म कोड को लेकर झामुमो अलग आंदोलन कर रहा है तो कांग्रेस की अपनी अलग कोशिश है। दोनों सड़क पर भी उतर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस के नेताओं के बोल भी झारखंड की राजनीति में मायने रखते हैं। बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने सदन में लगातार सरकार को घेर कर पार्टी की अहमियत बताने की कोशिश की थी। बाद में वह गोड्डा पावर प्लांट के मुद्दे पर हेमंत सोरेन से इतर रुख अख्तियार किया था। अब हाल में रामेश्वर उरांव ने रांची स्थित सिरमटोली फ्लाईओवर पर अपना बयान देकर गठबंधन सरकार को झकझोरा है। इसी तरह वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने अनुसूचित जनजातियों(एससी) की उपेक्षा को लेकर सीएम को पत्र लिख कर झारखंड की राजनीति में एक अलग लाईन खींच दी है। बताने की जरूरत नहीं कि झामुमो आदिवासियत(एसटी) लाईन को पकड़ कर आगे बढ़ रहा है तो कांग्रेस एसी लाईन को लपका है।

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