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नेताओं के चुनावी जुमले में सिमटकर रह गई डहरबाटी नाला व गांव का विकास।

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Khabar365news

आजादी के बाद से ही मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह गए हैं डहरबाटी के मजलूम परिवार।

लोहरदगा ब्यूरो सद्दाम खान के रिपोर्ट

लोहरदगा। दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुका भारत का लोहा पूरी दुनिया मानती है, लेकिन इसके अपने घर में विकास की हकीकत आज भी पीड़ा देती है। इस चमकता हिंदुस्तान में इसका जीता जागता जमीनी हकीकत झारखंड के लोहरदगा जिला के अति नक्सल प्रभावित किस्को प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत पाखर के डहरबाटी गांव का है, जहां के लोग आज भी केंद्र और राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से आच्छादित होने से कोसो दूर हैं, इन्हें बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेलना आदत सा पड़ गया है। गांव के मजलूमों का कहना है कि विकास की बातें हम लोग सिर्फ सुना करते हैं हमारे यहां तो सिर्फ यह सपना बना हुआ है। यहां के भोले-भाले लोग नेताओं के चुनावी जुमले में सिमटकर रह गए हैं।

झोपड़ी ही इनका स्वर्ग।

डहरबाटी गांव में आजादी के पूर्व से निवास कर रहे नगेसिया समुदाय के लोगों का जीवन भेड़ बकरी की तरह जंगली जानवरों के खौफ के साये में हर दिन बितता है। यहां पर गांव के लोगों को झोपड़ीनूमा कच्चे मकान में रात-दिन व्यतीत करना मजबूरी बन गया है। इनका कहना है कि सरकारी आवास के आस में उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच जा रहे हैं और तो और कितने लोग हमारे इस झोपड़ीनूमा स्वर्ग से सुंदर कुटिया से भगवान को प्यारे भी हो चुके हैं लेकिन आज तक पीएम आवास हो या फिर अबुआ आवास महज एक सपना बना हुआ है।

कितने लोग हो चुके हैं जंगली जानवरों का शिकार।

डहरबाटी गांव में आदिमकाल से नगेसिया समुदाय के लगभग 50 परिवार रहते आ रहे हैं। इनका आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि खुद से एक कमरे का पक्का मकान बना सके। ऐसे में इनका कच्चा मकान स्वर्ग जैसा है। गांव के सुखनाथ नगेसिया, प्रभु नगेसिया, मुलइर नगेसिया, सोमारी नगेसिया, विनीता नगेसिया, सुमंता नगेसिया, बिफनी नगेसिया, बिरसमुनी नगेसिया, रिंकी नगेसिया, सरिता नगेसिया, संझवा नगेसिया, नदरू नगेसिया, एतवा नगेसिया, मंगल नगेसिया, सुखन नगेसिया, उर्मिला नगेसिया, बसंती नगेसिया, मुनिता नगेसिया आदि का कहना है कि आवास की स्थिति ठीक नहीं रहने से आए दिन जंगली जानवरों का कोई ना कोई निवाला बन जाते हैं। इन मजलूम लोगों के मुताबिक स्थिति इतनी भयावह है कि जंगली जानवरों का सामना कर खौफ के साये में हमारे परिवार वालों के समक्ष जीवन जीने की बड़ी चुनौती बनी रहती है।

पगडंडी ही इनका असली साथी।

झारखंड के लोहरदगा जिला अंतर्गत डहरबाटी गांव में निवास कर रहे नगेसिया समुदाय का किस्को प्रखंड और जिला मुख्यालय आवागमन हेतु एकमात्र पगडंडी सहारा है। गांव के लोग उखड़ खाबड़ कच्चे सड़क से अपनी दिनचर्या और रोजमर्रा के निपटारे के लिए प्रखंड व जिला मुख्यालय मौत को गले लगाकर आवागमन किया करते हैं। सड़क निर्माण कार्य कराए जाने को लेकर नेताओं और प्रशासनिक अमला से बार-बार गुहार लगाई गई है फिर भी इनकी सबसे बड़ी सड़क की चुनौती से छुटकारा नहीं मिला है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि गांव के स्कूली बच्चे अपना भविष्य संवारने हेतु प्रतिदिन उक्त पगडंडी के सहारे गिरते-परते स्कूल कॉलेज आवाजाही किया करते हैं बावजूद इनके प्रति ना तो नेताओं ने हमदर्दी दिखाया है और ना ही प्रशासनिक अमला आगे आया है।

पांच हजार से अधिक किसान वर्ग होंगे लाभान्वित

किस्को के पाखर पठारी क्षेत्र में स्थित डहरबाटी नाला का निर्माण कार्य कराए जाने हेतु आजादी के बाद से लगातार क्षेत्र के लोगों के द्वारा किया जाता रहा है लेकिन आज तक नाला का निर्माण कार्य हाशिए पर लटका हुआ है। डहरबाटी नाला का निर्माण कार्य अब तक नहीं हो पाने से स्थानीय नेताओं और प्रशासनिक अमला की अनदेखी रवैया को साफ तौर पर दर्शाता है। बता दें कि डहरबाटी नाला का निर्माण कार्य हो जाने से लगभग 5 हजार से अधिक किसानों के खेतों में सरपट पानी पहुंचेगी जिससे किसान वर्ग सालों भर खेती कार्य को अंजाम देकर आर्थिक स्वावलंबन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क सपना।

किस्को के पाखर पंचायत अंतर्गत डहरबाटी गांव में चुने हुए जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अमला की अनदेखी रवैया से सबसे बुनियादी योजनाओं को आज तक नहीं पहुंचाया गया है। यहां पर बिजली, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क जैसी महत्वपूर्ण योजना गांव वालों के लिए आजादी के बाद से सिर्फ और सिर्फ सपना बना हुआ है। स्वास्थ्य की बात करें तो किसी का तबियत खराब हो जाने से लकड़ी के खाट को एम्बुलेंस बनाकर इलाज हेतु लगभग 15 किलोमीटर प्रखंड मुख्यालय पर संचालित सरकारी अस्पताल व 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित सदर अस्पताल लोहरदगा या फिर किसी प्राइवेट अस्पतालों में लेकर बीमार व्यक्ति को पहुंचते हैं।, कितने बार तो कई बीमार व्यक्ति समय से इलाज के अभाव में रास्ते में ही दम तोड़ दिया है। रही बात शिक्षा, पेयजल सड़क और बिजली की तो गांव में एक भी स्कूल नहीं है और ना ही पेयजल की उपलब्धता हेतु योजना पहुंची है, यहां की कच्ची सड़क ही इनका असली साथी बनकर साथ निभाने का काम कर रही है। बात करें बिजली की तो डहरबाटी गांव का कई टोला ऐसा है जहां तक आज भी बिजली व्यवस्था बहाल नहीं हो पाया है,ऐसे में ढिबरी युग ही इनका सहारा बना हुआ है।

बरसात में घेराबंदी हो जाते हैं गांव वाले।

डहरबाटी गांव पहुंचने से पहले एक नदी पार कर जाना पड़ता है। उक्त नदी में बरसात के दिनों में पहाड़ की तराई से इतनी तेज रफ्तार में पानी का बहाव होता है कि लोग चाह कर भी नदी से पार कर प्रखंड और हाट बाजार नहीं जा सकते हैं। ऐसे में पूरे बरसात के महीने में डहरबाटी गांव के लोग मजबूरन अपने घरों में दुबके रहते हैं। इन लोगों को बरसात के दिनों में भुखमरी की स्थिति से भी गुजरना पड़ता है।

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