डकरा.थैलेसिमिया रोग से पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए 16 दिसंबर 2020 को सिविल सोसायटी खलारी-डकरा का गठन कर रक्तदान शिविर आयोजित करने का अभियान शुरू किया गया था और पिछले चार साल में संस्था ने 3000 यूनिट रक्त संग्रह कर सदर अस्पताल रांची के ब्लडबैंक को भेजा है.इस अभियान में सीसीएल, जाॅय माइनिंग, खलारी पुलिस, ब्रह्मकुमारी परिवार सहित लगभग एक हजार नियमित रक्तदाताओं का भरपूर सहयोग मिलता है.इस अभियान में और तेजी लाने के उद्देश्य से मंगलवार को सिविल सोसायटी के सदस्यों की बैठक डकरा में हुई.निर्णय लिया गया कि थैलेसीमिया रोग के बारे में लोगों को अधिक से अधिक जानकारी दी जाए ताकि रक्तदाताओं की चेन को और बढ़ाया जा सके.इस अवसर पर सिविल सोसायटी और उनके सभी सहयोगी मौजूद थे.

50 से अधिक बार किया है रक्तदान
डकरा.सोसायटी के सदस्यों ने बताया कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के सहायतार्थ रक्तदान करने वाले क्षेत्र में कई ऐसे लोग हैं जो 50 से अधिक बार रक्तदान किए हैं.खलारी के उप मुखिया दीपक कुमार 67, चूरी के राजीव चटर्जी 56, इसके अलावा अजय बिश्वकर्मा,प्रो.अशोक कुमार मुखर्जी, ममता मुखर्जी, विक्की चौहान, भोला पांडेय, सतपाल सिंह, संजीव चन्द्रा, सुधीर कुमार, अखिलेश कुमार, उषा देवी,अनुज कुमार, अशोक शर्मा जैसे लोग प्रत्येक वर्ष तीन से चार बार रक्तदान करते हैं.

आज अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस
डकरा.आज आठ मई को अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस है.इस दिन को मनाने की शुरुआत 1994 में थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन (टीआईएफ) द्वारा की गई थी. इसी साल थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने 8 मई के दिन को थैलेसीमिया के मरीजों के नाम डेडिकेट किया था और इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के संघर्ष को इस दिवस के जरिए बताने का प्रयास किया गया.
थैलेसीमिया डे का महत्व
डकरा.सोसायटी के सदस्यों ने बताया कि थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में आज भी लोग बहुत ज्यादा अवेयर नहीं हैं इस वजह से कई बार मरीजों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता और उनकी मृत्यु हो जाती है.इस दिन को वर्ल्ड लेवल पर मनाने का यही मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बीमारी के बारे में जानें और इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए आगे आएं.मरीजों के साथ 8 मई का दिन उन डॉक्टर्स और सोशल वर्कर्स को भी सम्मानित करने का दिन है, जो निस्वार्थ भाव से ऐसे लोगों की सेवा कर रहे हैं.
क्या है थैलेसीमिया की बीमारी?
डकरा.थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर है, जो जेनेटिक होता है मतलब यह बीमारी माता- पिता से बच्चे में ट्रांसफर होती है इस बीमारी में मरीज में खून की बहुत ज्यादा कमी होने लगती है, जिस वजह से उन्हें बाहर से खून चढ़ाना पड़ता है.खून की कमी के चलते पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता जिससे वो एनीमिया का भी शिकार हो जाते हैं.इस बीमारी में बच्चों को बार-बार ब्लड बैंक ले जाना होता है.मरीज को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन हफ्ते बाद खून चढ़ाने की जरूरत होती है.
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