रांची।विधानसभा चुनाव पर चर्चा करते हुए श्री आजमानी कहते हैं कि वे किसी पार्टी से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं, बस इतना चाहते हैं कि सरकार जिसकी भी हो, झारखंड का सर्वांगीण विकास हो एवं भारत की संस्कृति और अखंडता विद्यमान रहे। वे कहते हैं कि 1992 से पूर्व से रह रहे लोगों को स्थानीयता, एसटी / एससी के लिए विशेष शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आरक्षण की नीति बने तथा स्थानीय को नौकरी में 50 फीसदी आरक्षण मिले।
परंतु स्थानीय नीति हो या आरक्षण, स्थानीय नीति के 50 फ़ीसदी आरक्षण में भी कर्म, प्रतिभा और योग्यता के अनुसार अवसर मिले, चाहे वो कोई भी हो। “ओराओं हो या सिंह या शर्मा या तिवारी या टिग्गा या महतो ” बस भारतीय हो. स्थानीय नीति और आरक्षण उपरांत, योग्यता किसी की मोहताज नहीं होनी चाहिए, प्रतिभा को यदि कोई सरकार सम्मान नहीं देती है और सिर्फ़ आरक्षण पर चलेगी तो वह समाज, वह राज्य, अंततः वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता है।
श्री आजमानी कहते हैं कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या का वे बहिष्कार करते हैं और तुरंत उनको राज्य ही नहीं संपूर्ण देश से बाहर निकालने का समर्थन करते हैं।
श्री आजमानी कहते हैं कि राजधानी रांचीवासी होकर भी उन्हें दुख है, क्योंकि रांची का विकास नहीं हुआ, न ही यहां के लोग जिम्मेवार बन सकें। 10% व्यापारी, सेवा वर्ग आदि और 70% गाँव के आदिवासी ही सफाई एवं सहनशीलता का परिचय देते हैं, बाकी सभी खाने-पीने और ऐश करने में लगे हैं।श्री रघुवर दास जी के समय राज्य में कुछ विकास हुआ, ख़ासकर सड़क और बिजली गाँव गाँव तक पहुँचाने का कार्य प्रशंसनीय है। गौ रक्षा हेतु कड़े नियम लाना इत्यादि जैसे अच्छी पहल भी इनके कार्यकाल में राज्य सरकार द्वारा पास किया गया। लेकिन उनका अहंकार और कार्यकर्ताओं के प्रति उदासीनता उन्हें और भाजपा को ले डूबा ।
श्री आजमानी कहते हैं कि वर्तमान मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी की सोच अच्छी थी, लेकिन विपक्ष और उनके खुद के लालची, अनपढ़ और भ्रष्ट सहयोगियों ने उनकी छवि और झारखंड निर्माण के उनके प्रयासों पर विराम ही नहीं, बल्की प्रश्नचिन्ह भी लगा दिया। इसके अलावा इनके पूरे कार्यकाल में आश्चर्यजनक तरीक़े से ट्रांसफ़र पोस्टिंग का जो शतरंज चलता रहा, उस कारण राज्य का पूरा सिस्टम कभी ट्रैक पर लंबे समय अथवा सुदृढ़ रूप से चल ही नहीं पाया ! एक तरफ़ राज्यहित योजनाओं का हेमंत सोरेन द्वारा शिलान्यास होता रहा तो दूसरी ओर इनके कुछ घूसखोर राज्य के हितों का बंटाधार करते रहें।
हमारे झारखंड की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियाँ फिर से जोड़तोड़ की सरकार की ओर इशारा करती और त्रिशंकु बनती नज़र आ रही है।
यदि मतदान के समय झारखंड की जनता जागरुक नहीं हुई और जाति, पाति, धर्म के मोहपाश से बाहर आकर यदि विकास करने वालें और निष्ठावान प्रतिनिधियों को नहीं चुनती है, तो झारखंड का भविष्य आगे और अंधकारमय हो सकता है।
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