झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार द्वारा विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग के गठन को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि विस्थापितों के नाम पर गठित यह आयोग दरअसल दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि इसके पास न तो कोई अधिकार होगा, न संसाधन और न ही निर्णय लेने की क्षमता।
सोरेन ने सवाल उठाया कि जब आयोग विस्थापितों को राहत देने के लिए एक डिसमिल जमीन या एक रुपया तक नहीं दे सकता, तो फिर इस आयोग के गठन से विस्थापित परिवारों की जिंदगी में बदलाव कैसे आएगा? उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास पहले से ही विभिन्न परियोजनाओं के विस्थापितों की सूची मौजूद है और उनकी बदहाली सबके सामने है। ऐसे में यह आयोग आखिर कौन-सा नया तथ्य खोज निकालेगा?
पूर्व मुख्यमंत्री ने सरकार पर आरोप लगाया कि इस आयोग को एक परामर्शदातृ समिति की तरह बनाया गया है, जिसकी सिफारिशों को मानने की कोई बाध्यता नहीं है। “इसका मतलब साफ है कि विस्थापितों को एक और दफ्तर की दौड़ लगाने के लिए मजबूर किया जाएगा। उनकी स्थिति का सर्वे तो होगा, आंकड़े भी जुटेंगे, लेकिन उन पर अमल करना सरकार की मर्जी पर टिका रहेगा,” उन्होंने कहा।
चंपाई सोरेन के मुताबिक, यह विडंबना है कि जिन परिवारों के लिए आयोग बनाया जा रहा है, उनके हित में निर्णय लेने की ताकत आयोग के पास होगी ही नहीं। उन्होंने इसे विस्थापितों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ और सरकार की राजनीतिक चाल बताया। उन्होंने राज्य सरकार को सीधी चुनौती दी कि अगर वाकई विस्थापन का दर्द समझती है तो विभागों और जनप्रतिनिधियों के पास पहले से पड़ी विस्थापितों की सूची पर कार्रवाई शुरू करे। “परिवारों की मदद आज से कीजिए, आयोग के नाम पर तीन साल तक टालना नाइंसाफी है,” उन्होंने कहा।
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