रिपोर्ट जितेन्द्र यादव
न पर्यावरण की चिंता, न जनता की—प्रशासन आखिर सो क्यों गया है?**
पाकुड़/महेशपुर: महेशपुर अंचल क्षेत्र के जियापानी में क्रशर संचालकों की मनमानी इस कदर बढ़ गई है कि स्थानीय लोग रोज़ ज़िंदगी और माहौल दोनों के साथ समझौता करने को मजबूर हैं। इलाके में धड़ल्ले से चल रहे क्रशर प्लांट न सिर्फ पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं बल्कि आसपास रहने वाले ग्रामीणों की सेहत पर भी गंभीर असर डाल रहे हैं।
धूल का गुबार, कंपन और भारी वाहनों की अवैध आवाजाही
ग्रामीणों का कहना है कि क्रशर से उठती धूल और मशीनों के कंपन ने उनका जीना मुश्किल कर दिया है। कई घरों की दीवारों में दरारें तक पड़ गई हैं। वहीं हर दिन सैकड़ों डंपर और ट्रक गांव की सड़कों पर दौड़ते हैं, जिससे हादसे का खतरा बना रहता है।
“हम लोग शिकायत करते-करते थक चुके हैं… पर कार्रवाई कहीं दिखती ही नहीं।”
—एक ग्रामीण की व्यथा
न पर्यावरण क्लियरेंस, न नियमों का पालन!
स्थानीय लोगों का दावा है कि कई क्रशर बिना पर्यावरणीय स्वीकृति, बिना डस्ट कंट्रोल और बिना सुरक्षा मानकों के चल रहे हैं।
सवाल बड़ा है—क्या प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं?
या फिर जानकारी होकर भी चुप्पी साधी हुई है?
अंचल और जिला प्रशासन की भूमिका पर उठ रहे सवाल
ग्रामीणों का आरोप है कि लगातार शिकायतों के बावजूद न तो अंचल कार्यालय और न ही जिला प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई की है।
लोगों में गहरी नाराज़गी है—
“जियापानी में पर्यावरण की धज्जियां उड़ रही हैं, और अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं!”
लोगों की मांग: तुरंत निरीक्षण और कार्रवाई
गांव के लोगों ने प्रशासन से सख्त कदम उठाने की अपील की है—
अवैध क्रशरों की जांच
पर्यावरण मानकों के अनुपालन की पुष्टि
धूल नियंत्रण के उपाय
भारी वाहनों के लिए वैकल्पिक मार्ग
रात में अवैध परिचालन पर रोक
अब पूरी नज़र प्रशासन पर
जियापानी की जनता अब सिर्फ एक सवाल पूछ रही है—
“हमारे जीवन, स्वास्थ्य और पर्यावरण के साथ कब तक खिलवाड़ होता रहेगा?”
और क्या प्रशासन इस बार जागेगा… या फिर क्रशर संचालकों की मनमानी यूँ ही चलती रहेगी?
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