
रांची विमेंस कॉलेज, रांची ने अपनी 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर “भारतीय ज्ञान परंपरा : भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी परिदृश्य” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया। इस संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्धि, उसके सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी प्रभावों पर गहन विमर्श किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार सिन्हा और मानविकी संकाय की अध्यक्ष डॉ. अर्चना दुबे बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारी परंपराएँ केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए दिशा-निर्देशक भी हैं।”
कॉलेज की प्राचार्या ने अपने स्वागत भाषण में भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि “यह संगोष्ठी न केवल हमारी बौद्धिक परंपरा को पुनर्जीवित करने का अवसर है, बल्कि यह हमारे समाज एवं शिक्षा प्रणाली में इसकी उपयोगिता को भी रेखांकित करती है।” डॉ. नेत्रा पोडियाल (कियल विश्वविद्यालय, जर्मनी): “भारतीय ज्ञान परंपरा केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक बौद्धिक परिदृश्य को भी समृद्ध करने में सहायक रही है।”

डॉ. धुनी सोरेन (इंग्लैंड): “जनजातीय परंपराएँ और भाषाएँ भारतीय ज्ञान परंपरा का अभिन्न अंग रही हैं, हमें इन्हें संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।”डॉ. रविभूषण (साहित्यकार एवं आलोचक): “भारतीय साहित्य और संस्कृति में निहित तत्व, आधुनिक विमर्शों को एक नई दृष्टि प्रदान करने में सक्षम हैं।”श्री रणेंद्र (साहित्यकार): “भारतीय भाषाएँ और लोक परंपराएँ समाज में समावेशिता और सहअस्तित्व का संदेश देती हैं।”डॉ. हरि उरांव (जनजातीय अध्ययन विशेषज्ञ): “भारतीय ज्ञान परंपरा में जनजातीय समुदायों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनका दर्शन, समाज और संस्कृति की जड़ों से जुड़ा है।”
डॉ. स्मृति सिंह (विषय विशेषज्ञ): “भाषा न केवल संप्रेषण का माध्यम है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पहचान भी है। हमें अपनी मातृभाषाओं के संरक्षण की दिशा में कार्य करना चाहिए।”संगोष्ठी के सफल आयोजन में रिया दे, डॉ. कुमारी उर्वशी, डॉ. किरण तिवारी, डॉ. किरण कुल्लू, डॉ. रितु घांसी के योगदान की विशेष सराहना की गई।प्राचार्या ने सभी शोधकर्ताओं, विद्वानों एवं आयोजकों का स्वागत करते हुए कहा कि “यह संगोष्ठी भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुद्धार का एक सशक्त मंच बनेगी और हमारी भाषा, संस्कृति एवं समाज को नई ऊर्जा प्रदान करेगी।” इस संगोष्ठी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को समकालीन दृष्टि से समझने और इसके भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण संवाद की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
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