आदिवासी संघर्ष मोर्चा बुजुर्ग जमीरा की ओर से सरना पार में मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ प्रकृति पर्व सरहुल मनाया गया। पाहन योगेंद्र मुंडा ने जाहेरस्थान पर ईष्ट देवता की पूजा-अर्चना कर क्षेत्र की सुख, शांति, समृद्धि, हरियाली, अच्छी फसल के लिए मंगलकामना की। इसके बाद समाज की पुरुष-महिलाएं व युवतियां परंपरागत वेशभूषा में सरहुल महोत्सव में शामिल हुए।

समारोह में छावनी परिषद स्कूल बुजुर्ग जमीरा के छात्र-छात्राओं द्वारा जनजातियों और क्षेत्रीय भाषाओं में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी गई. इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में समूह सरहुल नृत्य और गीत भी प्रस्तुत किया गया. जिसकी काफी सराहना हुई. इस अवसर पर सरना फूल पत्रिका का भी लोकार्पण किया गया. साथ ही जनजातीय कलाकारों और उत्कृष्ट कार्य करने वालों को पुरस्कृत किया गया.सरहुल समिति के द्वारा मुख्य अतिथि सह झारखंड आंदोलनकारी हीरा गोप ने बताया कि यह परंपरा पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है। इस परंपरा को उत्सव रूप में मनाकर नई पीढी के लोगों को सरहुल व पर्यावरण का महत्व बताना है। प्रकृति से प्रेम व अटूट रिश्ता होने के कारण ही पर्यावरण व संस्कृति को अब तक सहेज कर रखा गया है।

हम सभी को वातावरण की शुद्धता के लिए पेड़-पौधे लगाना होगा। हमारा जीवन प्रकृति से जुड़ा हुआ है। यह पर्व हमें प्रकृति व संस्कृति से जोड़े रखती है!झारखण्ड आंदोलनकारी देवानंद गोप ने कहा कि सरहुल में प्रचलित है, नाची से बांची। अर्थात जो नाचेगा वही बचेगा। क्योंकि, ऐसी मान्यता है कि नृत्य ही संस्कृति है। कहा, यह पर्व इस बात की याद दिलाता है कि धरती और सूर्य के संबंध से ही प्रकृति में हरियाली आती है। मौके पर समिति के महासचिव सुकरा मुंडा, मनोज मुंडा,पवन गोप मिथलेश मुंडा, प्रदीप मुंडा, भरत मुंडा, दीपक गोप, पैरो देवी, शांति देवी,चन्दन गोप, नन्द किशोर गोप रेखा देवी, उषा देवी व सोनी देवी, मंजू देवी समेत कई क्षेत्र के गनमान्य लोग उपस्थित थे।
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