झारखंड प्रदेश शौंडिक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता बीरेंद्र साहु ने काफी वर्षों से सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग पर लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी से दिसुम गुरु श्री शिबू सोरेन जी द्वारा दिनांक 10 अप्रैल 2003 को संविधान की धारा 341(1) के अंतर्गत भारत के महामहिम राष्ट्रपति चिठ्ठी लिख कर झारखंड प्रदेश में भी पश्चिम बंगाल की तर्ज पर सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को याद दिलाया।
सेवा में
श्री हेमंत सोरेन जी
लोकप्रिय मुख्यमंत्री,
झारखंड सरकार, रांची।
विषय : सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति (एस सी) की सूची में शामिल करने के संबंध में अनुरोध।
महोदय,
उपरोक्त विषय पर निवेदन है कि झारखंड प्रदेश में सुंडी शौंडिक जाति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियो की तरह बहुत बड़ी आबादी की संख्या में आदि काल से रहते आ रहे हैं एवं झारखंड के मूल निवासी हैं। झारखंड प्रदेश की संस्कृति एवं सभ्यता को अक्षुण बनाने मेंएवं इसके विकास में सतत प्रयत्नशील हैं। सुंडी शौंडिक जाति झारखंड प्रदेश के सुदूर गांवों, देहातो, जंगलों तथा पठारी इलाकों में अधिकांशतः निवास करते हैं एवं खेती बाड़ी,मजदूरी करके अपना जीवन का गुजर बसर कर रहे हैं, तथा आज भी गरीबी, अशिक्षा, एवं उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अगड़ी जातियों की द्वारा जिस तरह अनुसूचित जाति के लोगों से अस्पृश्यता सा व्यवहार करते हैं इसी तरह सुंडी शौंडिक जाति के लोगों के साथ किया जाता है। आज भी सुंडी शौंडिक जाति के यहां ब्राह्मणों के द्वारा सुदूर गांवों देहातो में पूजा पाठ अन्य सामाजिक सांस्कृतिक करवाया जाता है, परंतु छुआ छूत मान घरों में पकाए भोजन को ग्रहण करने में परहेज करते हैं। इतना ही नहीं वाराणसी के पांडा समूह आज भी दक्षिणा हाथ में लेने के बजाय उसे जमीन पर रखने को विवश किया जाता है और ब्राह्मण दक्षिणा को जमीन से उठाते हैं। अतः भेद भाव छुआ छूत मान अछूत की श्रेणी में रखा जाता है।
झारखंड राज्य के अतिरिक्त सुंडी शौंडिक जाति पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, के सीमावर्ती क्षेत्रों से जुड़े इलाकों के साथ ही मानभूम एवं अन्य प्रदेशों में निवास करते हैं। झारखंड प्रदेश में सुंडी शौंडिक को पिछड़ी जाति अनुसूचित 1 में रखा गया, झारखंड प्रदेश में सुंडी शौंडिक जाति की शैक्षणिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थिति पूर्णतः भिन्न एवं पिछड़ा है।
झारखंड प्रदेश की सुंडी शौंडिक जाति और हमारे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की सुंडी शौंडिक जाति में काफी समानता है, पश्चिम बंगाल एवं झारखंड प्रदेश की सुंडी शौंडिक जाति दोनों ही मानभूम संस्कृति के अनुपालक हैं तथा दोनों प्रदेशों के सुंडी शौंडिक जाति मूलतः अपने अपने प्रदेश के मूल निवासी हैं जो निरक्षरता, पिछड़ापन, एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत कमजोर हैं। झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के सुंडी शौंडिक जाति के बीच रोटी बेटी का अटूट संबंध है, पश्चिम बंगाल बिहार राज्य से अलग होने पर मानभूम जिले के सीमाना में झारखंड प्रदेश के कई जिलों के भाग पश्चिम बंगाल सीमाना में चला गया, जिससे एक ही परिवारों के कुछ सदस्य झारखंड प्रदेश एवं कुछ सदस्य पश्चिम बंगाल के निवासी हो गए जिससे आज भी सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, स्थिति के अतिरिक्त रहन सहन एवं भाषा भाषी में काफी समानता रह गई है इसके बावजूद झारखंड में सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति के जगह पिछड़ी जाति अनुसूचि 1 में रखा गया है, जबकि पश्चिम बंगाल में सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में रखा किया गया है। इसके चलते झारखंड राज्य में सुंडी शौंडिक जाति के लोग काफी उपेक्षित होते जा रहे हैं एवं दिनों दिन सुंडी शौंडिक जाति की स्थिति बदतर होती जा रही है।
उपरोक्त मांग पर विधानसभा के समछ अनेकों बार धारणा प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा गया साथ ही हमारे मांग को अनेकों विधायकों ने विधानसभा के पटल पर सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की आवाज उठाई है आश्वासन भी मिला लेकिन सरकार ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। दिनांक 10 अप्रैल 2003 में दिसुम गुरु श्री शिबू सोरेन जी सांसद रहते संविधान की धारा 341(1) के अंतर्गत झारखंड राज्य में अधिवास करने वाले सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने हेतु भारत सरकार के महामहिम राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिख कर झारखंड राज्य में सुंडी शौंडिक जाति को पश्चिम बंगाल की तरह अनुसूचित जाति में शामिल करने हेतु मांग पत्र सौंपा था साथ ही इनके दल के प्रो स्टीफन मरांडी जैसे अनेकों वरीय नेताओं ने राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिख सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने हेतु प्रेषित किया था। आज आपही की सरकार है आपके जैसे कर्मठ,न्यायप्रिय, एवं दीढता निश्चय वाले व्यक्तित्व पर आज पूरा झारखंड प्रदेश सुंडी शौंडिक समाज आशा भरी निगाहों से न्याय की अपेक्षा में आशा कर रहा है कि सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति से वंचित कर जो अन्याय हुआ है, उसे आप हमारे दिसुम गुरु श्री शिबू सोरेन जी के द्वारा पूर्व में हमारे सुंडी शौंडिक समाज को दिए गए आश्वाशन को सफल करने के लिए आप हमें न्याय देकर सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में सम्मिलित करने हेतु, निर्णय लेने की कृपा करेंगे।
झारखंड प्रदेश में सुंडी शौंडिक जाति की जनसंख्या लगभग 6,5 प्रतिशत है, परंतु आर्थिक, पिछड़ापन एवं राजनीतिक उपेक्षा तथा सामाजिक उपेक्षा का ही परिणाम है कि आज झारखंड सरकार में सुंडी शौंडिक जाति को प्रतिनिधीत्व करने वाले विधायकों की कमी है।
अतः एक बार पुनः झारखंड प्रदेश शौंडिक संघ एवं पंच परगना सुंडी संघ के प्रदेश संगठन ने सुंडी शौंडिक जाति को पश्चिम बंगाल की तर्ज पर सुंडी शौंडिक जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का अनुरोध करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी हमारी मांग पूरी करें हमारी मांग पूरी होने से झारखंड प्रदेश में सुंडी शौंडिक जाति के लोगों का आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक विकास में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी। प्रदेश के सुंडी शौंडिक जाति के लोग मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी के तरफ आशा भरी निगाहों से उम्मीद कर रहे हैं।
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