मोदी लहर व डबल इंजन की सरकार में भी 2019 में लाये थे 4,23 लाख वोट
रांची। झारखंड की राजधानी रांची की सीट एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। जहाँ भाजपा इस सीट पर सांसद संजय सेठ के रूप में अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती है। वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन इस सीट को भाजपा से छिनना चाहता है । भाजपा ने तो वर्तमान सांसद संजय सेठ को ही फिर से उतारा है। वहीं इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को दी गई रांची की सीट के लिए कांग्रेस की ओर से अभी तब प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गयी। हालांकि रांची से सटे तीन जिलों खूंटी से कालीचरण मुंडा, लोहरदगा से सुखदेव भगत और हजारीबाग से भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक जे पी पटेल को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस पार्टी की चुनावी प्रक्रिया के अनुसार पहले स्क्रिींग कमिटी और फिर इसके बाद कांग्रेस चुनाव समिति ने रांची सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का नाम तय किया है। अब यह तय हो गया है कि रांची सीट से सुबोध कांत सहाय कांग्रेस प्रत्याशी होंगे। इधर शनिवार को कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर के साथ रांची पहुंचे सुबोध कांत सहाय ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं से अपने-अपने क्षेत्र में चुनावी कार्य में लग जाने को कहा है।
12 अप्रैल को हो सकती है घोषणा
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार 12 अप्रैल को कांग्रेस की ओर से रांची, धनबाद, गोड्डा और पलामू या चतरा में से एक सीट के लिए प्रत्याशी की घोषणा की जा सकती है।
केंद्र की चार सरकार में रहे हैं मंत्री
रांची संसदीय सीट से सुबोधकांत सहाय तीन बार, एक बार 1989 में जनता दल के टिकट और दो बार 2004 और 2009 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद चुने गये। तीनों बार संयोग रहा कि सुबोधकांत सहाय केंद्र सरकार में मंत्री बने।
सुबोध को 4,23 लाख तो रामटहल को मिले थे 29,597 मत
झारखंड कांग्रेस का एक धड़ा सुबोधकांत सहाय के मुकाबले रामटहल चौधरी को बड़ा नेता बता रहे है। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को जहाँ 4,23,802 वोट मिले थे। वहीं भाजपा से टिकट कटने पर निर्दलीय चुनाव लड़े पांच बार के सांसद रहे रामटहल चौधरी को मात्र 29,597 वोट मिले थे।
कांग्रेस के परंपरागत वोट पर सुबोधकांत की पकड़
कांग्रेस की परंपरागत माने जाने वाले मुस्लिम और इसाई समुदाय की वोटो पर सुबोधकांत की जबरदस्त पकड़ है। मुस्लिम समुदाय के धर्म गुरुओं, नेताओं और आम लोगों से सुबोधकांत के मधुर संबंध उन्हें चुनाव में लाभ पहुँचाते है। वहीं इसाई धर्म गुरुओं के साथ सुबोधकांत के अच्छे तालुकात सभी को पता है। ठीक उसके विपरीत भाजपा के परंपरागत कुर्मी वोटरों पर पूर्व सांसद रामटहल चौधरी की पकड़ कमजोर है। शायद इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में रामटहल के लाख अपील के बावजूद कुर्मी समुदाय के लोगों ने भाजपा को दिल खोल कर वोट किया था।
मतदाताओं पर व्यक्तिगत पकड़
कांग्रेस पार्टी चाहे सुबोधकांत सहाय का विकल्प तलाश करने की लाख कोशिश करे। लेकिन फिलहाल ऐसा संभव नजर नहीं आता है। सुबोधकांत 1977 से अर्थात करीब 47 वर्षों से रांची में राजनीति कर रहे है। जिस कारण रांची के मतदाताओं, आमजनों और विभिन्न संगठनों के लोगों से उनका सीधा संबंध है। जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिलता रहा है।
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