राज्य का ऊर्जा विभाग हैडलेस बना हुआ है। लगभग डेढ़ महीने से विभाग के सभी शीर्ष पद खाली है। इसकी जानकारी सबको है। सरकार के शीर्ष पर बैठे सभी नेताओं और अधिकारियों को इस स्थिति की बेहतर जानकारी है। मालूम हो कि अविनाश कुमार की मूल पोस्टिंग ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव पद पर थी। इसके अलावा उन्हें मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव, झारखंड ऊर्जा विकास निगम के सीएमडी, ऊर्जा संचरण निगम के एमडी, दिल्ली के अपर स्थानिक आयुक्त और राज्य के विकास आयुक्त का भी प्रभार था। अलका तिवारी का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकार ने तीस सितंबर को एक महत्वपूर्ण फैसले में अविनाश कुमार को राज्य का नया मुख्य सचिव बनाया। इसके अलावा उन्हें मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव और अपर स्थानिक आयुक्त दिल्ली का भी प्रभाव सौपा गया। विकास आयुक्त की जिम्मेदारी भी स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह को सौंप दी गई। लेकिन ऊर्जा विभाग के सचिव या प्रधान सचिव के पद पर किसी की पदस्थापन नहीं की गई।
ऊर्जा विकास निगम के सीएमडी और ऊर्जा संचरण निगम के एमडी के पद पर भी किसी की पोस्टिंग नहीं हुई। 30 सितंबर 2025 से ये सभी पद रिक्त हैं। एक महीना 10 दिन बाद भी ऊर्जा विभाग के सचिव, ऊर्जा विकास निगम के सीएमडी और ऊर्जा संचरण निगम के एमडी के पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की जा सकी है। ये सभी महत्वपूर्ण पद काम चलाओ व्यवस्था के अधीन है। वैसे सरकारी व्यवस्था के तहत जब किसी विभाग का कोई सचिव नहीं होता है तो उसकी जिम्मेदारी मुख्य सचिव को निभानी पड़ती है। इस तरह मुख्य सचिव के माध्यम से ही ऊर्जा विभाग का भी काम चलाया जा रहा है। हालांकि सरकार में कई ऐसे अन्य पद है जो काम चलाओ व्यवस्था के प्रतीक बने हुए हैं। सचिवालय में अब सवाल उठाए जाने लगे हैं कि ऊर्जा विभाग को सरकार ने क्यों हैडलेस बना रखा है। जबकि बिजली राज्य की महत्वपूर्ण जरूरत है। इस विभाग का किसी बड़े अधिकारी को पूर्ण दायित्व देना राज्य और राज्य की जनता के हित में बताया जाता है।
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