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झारखंड में पराली संकट की दस्तक: क्या हम तैयार हैं ज़हरीली धुएं के साए के लिए

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रिपोर्ट: कुमार हेमन्त, विशेष संवाददाता राँची

झारखंड की हरियाली, जो अब तक प्रदूषण की मार से काफी हद तक अछूती रही है, एक नए संकट की ओर बढ़ रही है। खेतों में धान की कटाई के बाद छोड़ी गई पराली अब धीरे-धीरे आग की भेंट चढ़ने लगी है। यह वही दृश्य है जो हम वर्षों से पंजाब और हरियाणा में देखते आए हैं। जहाँ खेतों की हरियाली के बाद आसमान में धुएँ की चादर लिपट जाती है, और साँस लेना भी एक चुनौती बन जाता है।

हार्वेस्टर से बढ़ती मुसीबत

पिछले साल की तुलना में इस बार झारखंड के कई जिलों में हार्वेस्टर मशीनों से धान की कटाई और मिंसाई की गई। यह तकनीक भले ही किसानों के लिए श्रम और समय की बचत का जरिया बनी हो, लेकिन इसके पीछे छिपा खतरा अब सिर उठाने लगा है। हार्वेस्टर से कटाई के बाद खेतों में बची पराली को हटाना मुश्किल होता है, और इसका सबसे आसान रास्ता किसान आग लगाना मानते हैं।

पराली जलाना: लाभ नहीं, विनाश का निमंत्रण

कई किसान मानते हैं कि पराली जलाने से खेत की उर्वरता बढ़ती है, लेकिन वैज्ञानिक तथ्य इसके उलट हैं। पराली जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, लाभकारी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की उर्वरक क्षमता घटती है। इससे भी बड़ा खतरा है – वायु प्रदूषण।

पराली जलाने से निकलने वाला धुआं न केवल खेतों को बंजर बनाता है, बल्कि हवा में घुलकर पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कणों के ज़रिए हमारे फेफड़ों तक पहुँचता है। कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे गैसें वातावरण को ज़हरीला बना देती हैं। इसका सबसे बुरा असर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों पर पड़ता है।

स्मॉग की गिरफ्त में झारखंड?

अगर यही हालात रहे, तो आने वाले 4-5 वर्षों में राँची, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद जैसे शहरों में भी वही धुंध छा जाएगी जो दिल्ली और पंजाब-हरियाणा में हर साल अक्टूबर-नवंबर में देखी जाती है। दृश्यता घटेगी, सड़क हादसे बढ़ेंगे, और अस्पतालों में सांस के मरीजों की कतारें लंबी होती जाएँगी।

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में पराली जलाने की घटनाएँ अभी सीमित हैं, लेकिन यह आग अगर फैल गई, तो इसे रोकना मुश्किल होगा। हमें अभी चेतना होगा। किसानों को जागरूक करना होगा कि पराली जलाना समाधान नहीं, समस्या है। सरकार को चाहिए कि वैकल्पिक उपायों जैसे बायो-डिकम्पोजर, पराली प्रबंधन मशीनें और सब्सिडी योजनाओं को गाँव-गाँव तक पहुँचाए। ताकि आने वाले समय में इन गंभीर समस्याओं से हमारे बच्चे पीड़ित न हों।

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