
बुढ़मू : बालू कोयला जिसमे से दो ऐसे खनीज पदार्थ है जिसपर वन विभाग, स्थानीय बुढ़मू थाना या स्थानीय प्रशासन के कई अन्य विंग ऐसे है जहाँ कोयले की काली कमाई व बालू के उड़ते नोटों को पकड़ने मे यहाँ के पदाधिकारी मालामाल है. चालान के नाम पर दो नंबर बालू को एक नंबर करने के फिराक मे दामोदर नदी के अस्तित्व को समाप्त करने मे लगे है माफिया,
यूँ कहे तो बुढ़मू मे अवैध बालू व कोयले का धंधा आज कोई नई बात नहीं है पिछले कई वर्षो से बदस्तुर जारी इन दो धंधों के चलते बुढ़मू थाना आज सोने की चिड़ियाँ बन चूका है. सालो भर चलने वाले इन दोनों धंधों मे प्रशासन से लेकर उग्रवादी तक मालमाल है. बालू मे एक और जहाँ दो दर्जन से अधिक बालू माफिया सक्रिय हो झारखण्ड के खनीज सम्पदा को लूटने का काम कर रहा है

वहीं दूसरी ओर बुढ़मू के विभिन्न क्षेत्रो से जारी अवैध कोयले के धंधों मे दर्जनों बड़े माफिया व सैकड़ो छोटे स्तर के माफिया सक्रिय होकर पुरे छापर माइंस (कॉल) क्षेत्र को खोखला कर चुके है.जिसे रोकने व टोकने वाला आज कोई अधिकारी नहीं है. रात के अँधेरे से लेकर दिन के उजाले तक सांय सांय दौड़ाती बालू व कोयले की गाड़ियों से आज राहगीरों को भी चलना दुभार हो चूका है,
अगर बुढ़मू प्रशासन की बात करें तो उक्त धंधे को लेकर स्थानीय बुढ़मू पुलिस अवैध वसूली तक ही सिमट कर रह गई है.इस कारण आज अपराध का ग्राफ भी काफ़ी हद तक बढ़ गई है.अगर वर्तमान स्थिति को अगर देखें तो बुढ़मू पुलिस की भूमिका काफ़ी संदिग्ध है.दिलचस्प बात तो ये है की बालू व कोयले की यह अवैध धंधे मे पुलिस व उग्रवादियों की भूमिका सामान नजर आ रही है.
स्थिति यह है की बाघ बकरी एक ही घाट मे पानी पीते नजर आ रहे है. प्रशासन से ज्यादा यहाँ नक्सली संगठन हावी है. और तो और खुले आम बालू और कोयला तस्करो से नक्सली संगठन के नाम पर पर्ची भी काटी जा रही है. जिसको बुढ़मू प्रशासन द्वारा अप्रत्याशीत रूप से समर्थन भी किया गया है.
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