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अमिटी यूनिवर्सिटी में डालसा का कार्यक्रम

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मादक पेय व नशीली दवाओं के सेवन से होती है शारीरिक व मानसिक हानी : राजेश कुमार सिन्हा
ऽ एलएडीसीएस अधिवक्ता राजेश कुमार सिन्हा ने संविधान के अनुच्छेद 47 पर किया फोकस

रांची : माननीय झालसा के निर्देश पर माननीय न्यायायुक्त-सह-अध्यक्ष के मार्गदर्शन में आज दिनांक 05.03.2025 बुधवार को अमिटी यूनिवर्सिटी में नशा मुक्ति पर एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एलएडीसीएस अधिवक्ता, श्री राजेश कुमार सिन्हा, लाईफ सेवर्स एनजीओ प्रमुख, अतुल गेरा, सी.आई.डी., एस. आई. रिजवान अंसारी तथा डायरेक्टर, ड्रग्स डिपार्टमेंट एवं अमेटी युनिवर्सिटी के निदेशक, शिक्षक – शिक्षिकाएं एवं राजा वर्मा समेत अन्य लोग उपस्थित थे।
एलएडीसीएस अधिवक्ता राजेश कुमार सिन्हा ने भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 राज्य को निर्देशित करता है कि वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक पेय और नशीली दवाओं के सेवन को औषधीय उद्देश्यों को छोड़कर, समाप्त करने का प्रयास करेगा। अफीम या पोस्ता के उत्पादन या कब्ज़े पर एनडीपीएस अधिनियम 1985 के तहत मात्रा के आधार पर 20 साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है। बार-बार अपराध करने पर मृत्युदंड तक दिया जा सकता है। काँके के पुनर्वास केंद्रों के साथ-साथ एनजीओ भी नशा करने वालों को ठीक करने में मदद करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सीआईपी और रिनपास में जिला विधिक सेवा प्राधिकार का लिगल एड क्लिनिक है, वहां पर वैसे नशा करनेवाले व्यक्तियों को ईलाज किया जाता है। इसमें जिला विधिक सेवा प्राधिकार, रांची सहायता प्रदान करती है। नशा से संबंधित पदार्थों के बारे में श्री सिन्हा ने विस्तार से बताया। उन्होंने सजा के प्रावधान के बारे में भी बताया और उन पदार्थों के बारे में बतलाया जिसका तस्करी करने से रखने से एक जगह से दूसरे जगह ले जाने पर एवं किसी व्यक्ति के पास पाये जाने पर वह एनडीपीएस कानून के तहत सजा के भागी होंगे। इसके अलावा उन्होंने नालसा टॉल फ्री नम्बर 15100 की जानकारी दी।
लाईफ सेवर्स एनजीओ के अतुल गेरा के द्वारा भी नशा उन्मूलन पर प्रकाश डाला गया, उन्होंने कहा कि जिनको ड्रग्स या दूसरा नशा का लत लग जाता है उसका शरीर धीरे-धीरे खोखला हो जाता है। बच्चे भारत देश का भविष्य है, इसलिए हर हाल में ड्रग्स से दूर रहना है और दूसरों को भी नशामुक्त करना है।
ड्रग्स निदेशक ने बताया कि कैसे साधारण खाँसी की सिरप जैसी चीज़ों का नशे के लिए उपयोग किया जाता है। झारखंड राज्य न केवल नशीली दवाओं का उपभोग करता है, बल्कि भारी कार्रवाई के बावजूद इनका उत्पादन भी करता है। नशा करने से व्यक्ति और परिवार, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ लोगों के लिए नशे की यात्रा 16 वर्ष या इससे कम उम्र से ही शुरू हो जाती है। पुनर्वास केंद्रों की अधिक जनसंख्या उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। यदि राँची में नशे की समस्या पर नियंत्रण पाया जाए तो अपराध दर में लगभग 70 प्रतिशत की कमी आ सकती है। राँची में नशीली दवाओं से संबंधित किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना अधिकारियों को देने की सलाह दी जाती है।
सी.आई.डी. के एस.आई. रिजवान अंसारी ने कहा कि झारखंड में इस नशे की समस्या को रोकने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह क़ानूनों के कार्यान्वयन और हितधारकों के बीच समन्वय के लिए ज़िम्मेदार है। नशे की दवाओं का उत्पादन और वितरण इस समस्या की जड़ तक पहुँचता है। अधिकांश तस्करी के गिरोह संसाधनों की कमी के कारण पकड़े नहीं जाते। गृह मंत्रालय ने पिछले महीने मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित किसी भी संदेह की जानकारी देने के लिए आम जनता के लिए मानस हेल्पलाइन (टोल फ्री नं. 1933) स्थापित की है।
ज्ञात हो कि एन.सी.बी. से आये अधिकारियों ने भी उपस्थित बच्चों को नशा से संबंधित कानूनों के बारे में जानकारी दी। नशीली पदार्थों के सेवन से होनेवाली हानियों के बारे में बताये तथा संबंधित सजा के बारे में विस्तृत चर्चा किये।

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