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हेमंत सोरेन को बीजेपी की सुस्त सियासत से हुआ बड़ा लाभ, आइए जानते हैं कैसे?

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रांची। झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के तमाम क्रियाकलाप अब ट्वीटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म तक ही सीमित रह गए हैं। भाजपा राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी है। जाहिर सी बात है कि राज्य सरकार के गलत फैसलों या नीतियों के विरोध का सारा दारोमदार उसी पर है। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने सारे मामले उजागर हुए, जिनकी मुखालिफत बीजेपी सतह पर करती तो उसका खोया रुतबा फिर हासिल हो सकता था। लेकिन इसकी जरूरत राज्य के बीजेपी नेताओं को कभी महसूस नहीं होती जान पड़ती है। फिलहाल हेमंत सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो रहे हैं। इस अवधि में बीजेपी के सामने इतने मौके आए, जिनके खिलाफ बीजेपी सड़क पर उतरती तो अगली बार हेमंत को सत्ता में दोबारा वापसी की संभावना ही खत्म हो जाती। एक-दो अवसरों को छोड़ दें तो बीजेपी ने ज्यादातर अपना विरोध ट्वीटर या फेसबुक तक ही सीमित रखा। इसकी चिंता न बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक प्रकाश ने कभी महसूस की और न विरोधी दल के नेता होने के नाते पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने। बहुत हुआ तो उन्होंने ट्विटर हैंडल या फेसबुक अकाउंट के जरिए बयानबाजी कर ली।

नियोजन नीति बन सकता था बड़ा मुद्दा :

नियोजन नीति में बिहार, यूपी जैसे राज्यों से आकर झारखंड में बसे लोगों की नौकरी के अवसर राज्य सरकार ने खत्म कर दिए थे। तकरीबन 40 फीसदी ऐसी आबादी के हित में बीजेपी राज्यव्यापी आंदोलन कर सकती थी। पर, उसने चुप्पी साध ली। विरोध सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हुआ। यह तो हाईकोर्ट था, जिसने नियोजन नीति को खारिज कर दिया। यह राज्य सरकार की सबसे बड़ी विफलता थी। बीजेपी ने इसे लेकर रांची में सचिवालय का घेराव कार्यक्रम किया। हो सकता है कि हाईकोर्ट से पहले नियोजन नीति का विरोध करना बीजेपी को नुकसान पहुंचाता, क्योंकि इसमें मूल झारखंडियों को राज्य सरकार ने लाभ देने की घोषणा की थी। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद उसे सरकार की विफलता बता कर या झारखंडियों के साथ छल कह कर सतत आंदोलन बीजेपी चला सकती थी।

स्थानीय नीति पर भी बीजेपी की चुप्पी :

बीजेपी को मालूम था कि स्थानीय नीति का आधार 1932 के खतियान को बनाना कानूनी रूप से उचित नहीं है। हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति का प्रस्ताव पास करा लिया। बीजेपी ने मुखर रूप से इसका विरोध नहीं किया। वह जनता के बीच इस हकीकत के साथ जा सकती थी कि स्थानीय नीति का झुनझुना थमा कर सरकार झारखंडियों के साथ छल कर रही है। खैर, जब राजभवन ने इसमें कानूनी कमियां गिना कर विधेयक लौटा दिया, तब भी बीजेपी राज्य सरकार की धोखेबाजी को लेकर जनता के बीच जा सकती थी। यह अवसर भी बीजेपी ने गंवा दिया।

हेमंत सरकार के भ्रष्टाचार पर शांत रही बीजेपी :

हेमंत सोरेन की सरकार पर शुरू से ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। पद का दुरुपयोग कर खनन पट्टा हेमंत ने अपने और पत्नी के नाम लिया। बीजेपी ने अपनी भूमिका सिर्फ इसकी शिकायत राज्यपाल से करने तक सीमित रखी। आफिस आफ प्रॉफिट के इस मामले को लेकर बीजेपी जनता के बीच जा सकती थी। ईडी-सीबीआई जैसी एजेंसियों की जांच में खनन घोटाले और जमीन के गोरखधंधे के कई बड़े राज बाहर आये। आई एस पूजा सिंघल और हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र और अन्य कई लोग गिरफ्तार किये गए। भाजपा को इन मुद्दों को जनता के बीच जाकर भुनाने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई। सत्ता से नजदीकी संबंध रखने वाले दलालों के नाम उजागर हुए। उनमें कई की गिरफ्तारी हुई। जमीन घोटाले में ही आईएएस छवि रंजन की गिरफ्तारी हुई। इस फर्जीवाड़े में आधा दर्जन से अधिक लोग पकड़े गए हैं। जांच अब भी जारी है। दलालों ने भ्रष्ट अफसरों-कर्मचारियों से सांठगांठ कर सेना की जमीन तक बेच डाली। जांच के क्रम में ईडी ने सेना के कब्जे वाली जमीन के मालिक समेत 13 लोगों को समन भेजा है।

सही मायने में सीबीआई और ईडी ने किया विपक्ष का काम :

सच कहें तो झारखंड की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी का काम ईडी और सीबीआई कर रहे हैं। ऐसे मामलों में हाई कोर्ट संज्ञान लेकर राय फैसले सुना रहे हैं। लेकिन बीजेपी के नेता अपनी भूमिका सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रखे हुए हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार समेत कई राज्यों में बड़ा सांगठनिक फेर-बदल किया, लेकिन झारखंड में अब तक यह काम नहीं हो पाया है। लगता है कि प्रदेश बीजेपी के नेता यह मान कर बैठ गए हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह कोई न कोई करिश्मा कर ही देंगे। शायद यही वजह है कि घर-दफ्तर में बैठ कर बीजेपी के राज्य स्तरीय नेता ट्वीट वार तक ही अपने आप को सीमित कर लिया है।

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