जमशेदपुर : जमशेदपुर की कांति देवी के लिए महाकुम्भ स्नान ने कोरोना काल की याद दिला दी। कोरोना में जिस तरह से हजारों लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने-अपने घरों को लौटे थे। कांति देवी के लिए अंतर इतना था कि वह भीड़ में भी पूरी तरह से अकेली रही और इतनी अकेली की जिस प्रयागराज में करोड़ों लोग इकट्ठा थे, योगी आदित्यनाथ की नगरी में जहां अनगिनत लोगों की सहायता की जा रही है, हालात की मारी इन कांति देवी की मदद करने वाला कोई नहीं मिला और कांति देवी ने इतनी हिम्मत जरूर की कि उन्होंने पैदल घर वापस लौटने का निर्णय लिया और 10 दिनों में 700 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपने घर पहुंच ही गयीं।
कांति देवी एक खुशहाल परिवार से सम्बद्ध रखती हैं। परिवार कैटरिंग चलाकर आजीविका चलाता है। देश-दुनिया से करोड़ों लोगों के महाकुम्भ जाने की खबरें सुनकर वह भी प्रयागराज के लिए निकल पड़ीं। 35 लोगों के ग्रुप में वह भी शामिल थीं। वह प्रयागराज के महाकुम्भ वह आराम से पहुंच गयीं, पवित्र स्नान भी कर लिया। वापसी के समय जब वह स्टेशन पहुंची तो वहां इतनी भीड़ थी कि वह ट्रेन में चढ़ नहीं सकीं, उनका सामान और पास में रखे 7000 रुपये भी इस भीड़ में गुम हो गये। लाचार होकर कांति देवी ने कई लोगों से मदद मांगी लेकिन उनकी मदद किसी ने नहीं की। आखिर उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया और उन्होंने अपने साथ जो गंगा जल लिया था, उसे लेकर वह निकल पड़ीं 700 किलोमीटर दूर जमशेदपुर में अपने घर के लिए।
इधर उनके घर वालों को उनके बिछड़ जाने की जब खबर मिली तो वे बेचैन हो उठे। वे अपने स्तर से जो कुछ भी कर सकते थे उन्होंने किया, तभी अचानक 10 दिनों बाद कांति देवी जमशेदपुर अपने घर छायानगर पहुंच गयीं। कांति देवी को अपने सामने देख कर हक्के-बक्के रह गये और उन्हें खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
यह सही है कि प्रयागराज में करोड़ों की भीड़ एकत्र हो रही है। सभी की मदद करना सम्भव नहीं है, लेकिन कुछ तो व्यवस्थाएं ऐसी होनी चाहिए कि प्रयागराज कुम्भ में बड़ी उम्र के आये लोगों के लिए कोई विशेष व्यवस्था की जाये। यह सिर्फ कांति देवी की ही कहानी नहीं हो सकती, प्रयागराज में कांति देवी जैसी कई कहानियां होंगी।
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