पूरा झारखंड : पूरा झारखंड नये मुख्य सचिव की नियुक्ति पर पैनी नजर रखे हुए था। इसमें नेता, अधिकारी और प्रबुध नागरिकों की नजर सबसे अधिक पैनी थी। उसमें भी सचिवालय में बैठे अधिकारी और कर्मचारी कुछ ज्यादा ही सजग थे। वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी नाप रहे थे। सीएम को तौल रहे थे। देखना चाहते थे कि मुख्यमंत्री इस विषम परिस्थिति में क्या निर्णय लेते हैं। जब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से कोई अधिकारी आनेवाला नहीं था। इससे अजमंजस की स्थिति भयावह होती जा रही थी। निर्णय लेना कठिन बताया जा रहा था। क्योंकि अविनाश कुमार को छोड़ किसी दूसरे को मुख्य सचिव बनाए जाने पर सीएस रैंक के दूसरे सभी अधिकारी जूनियर थे। पूर्व के उदारण भी रहे हैं जब सुखदेव सिंह मुख्य सचिव थे, एपी सिंह बैठक में नहीं जाते थे। इसी तरह राजबाला वर्मा और एलबी खियांग्ते के समय भी ऐसा हुआ करता था। क्योंकि वे जूनियर की अध्यक्षता में होनेवाली बैठक में शामिल होना वे अपनी तौहीन समझते थे।
इस विकट परिस्थिति में मुख्य सचिव की नियुक्ति पर सबकी नजर होना, स्वभाविक भी था। लेकिन 1993 बैच के आईएएस अधिकारी अविनाश कुमार को मुख्य सचिव बना कर मुख्यमंत्री ने सबको चुप करा दिया। कोई यह सवाल उठाने का साहस नहीं कर सका कि अविनाश कुमार की नियुक्ति गलत हुई। यहां तक कि उनके विरोधी भी चुप रहने को विवश हो गए। क्योंकि झारखंड में पदस्थापित और कार्यरत मुख्य सचिव रैंक का कोई भी अधिकारी उनसे सीनियर नहीं है। इसके अलावा आम कर्मचारी अधिकारी तो अविनाश कुमार की समझ और संस्कार के कायल थे ही, विरोधी भी उनकी कार्य क्षमता और प्रशासनिक कुशलता को लेकर सवाल खड़ा नहीं कर पाये। सचिवालय के आम कर्मचारियों और अधिकारियों में यह चर्चा भी होने लगी है कि अब कोई उनसे बगैर कोई रोक-टोक के मिल सकता है। अपनी परेशानी बता सकता है। हालांकि यह अविनाश कुमार के दायित्व को बढ़ा देता है।
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