रांची : उत्तर प्रदेश के इटावा में कथावाचकों के साथ हुए जातीय अत्याचार की घटना को लेकर झारखंड प्रदेश राजद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के प्रदेश महासचिव व मीडिया प्रभारी कैलाश यादव ने इस कृत्य को ‘दुर्दांत सामंती सोच’ की उपज बताते हुए कड़ी निंदा की है। प्रेस बयान जारी कर कैलाश यादव ने कहा कि देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अब भी मनुवादी मानसिकता जीवित है और जातीय भेदभाव की जड़ें गहरी बनी हुई हैं। उन्होंने इटावा की घटना को ‘सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा’ बताया।
कथित घटना के संबंध में उन्होंने कहा कि कथावाचक मुकुट सिंह और संत सिंह यादव, जो कि यादव व दलित समुदाय से आते हैं, के साथ जाति पूछकर मारपीट, बाल मुंडन और ब्राह्मण पेशाब से कथित ‘शुद्धिकरण’ जैसे जघन्य व्यवहार किए गए। इसे उन्होंने ‘घृणित, निंदनीय और अमानवीय’ बताया।
कैलाश यादव ने कहा, “भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेने वाले देश में जब किसी यादव या दलित कथावाचक के साथ इस प्रकार का कृत्य होता है, तो यह दर्शाता है कि देश में सामाजिक न्याय की अवधारणा संकट में है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि देश एक तरफ ‘अमृतकाल’ मना रहा है, दूसरी तरफ भाजपा शासित प्रदेशों में पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज के साथ अत्याचार चरम पर है। उन्होंने मध्यप्रदेश, उड़ीसा और अन्य राज्यों में हाल के जातीय उत्पीड़न के उदाहरण गिनाते हुए कहा कि “ऐसे मामलों में सरकारें मौन हैं, जिससे लग रहा है कि शासन-प्रशासन इस पर गंभीर नहीं है।”
कैलाश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह, अन्नपूर्णा देवी, बाबूलाल मरांडी और सुदेश महतो जैसे नेताओं की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब देश सामाजिक न्याय की बुनियाद पर खड़ा है, तब ऐसे विषयों पर चुप रहना बेहद खतरनाक संकेत है।
राजद नेता ने चेताया कि देश की 90 फीसदी आबादी दलित-पिछड़े-बहुजन समुदाय से आती है, और यदि इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश नहीं लगाया गया तो सामाजिक समरसता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
कैलाश यादव ने घटना पर गंभीर चिंता और आक्रोश जताते हुए कहा कि यह 1990 के दशक जैसी सोच की वापसी है, जब दलितों को खाट पर बैठने तक नहीं दिया जाता था। राजद ने इस घटना पर रोष जताते हुए कड़ी निंदा की है और केंद्र तथा राज्य सरकारों से त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
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