साहित्य और प्रशासन के संगम का एक सुंदर उदाहरण पेश करते हुए सिमडेगा की उपायुक्त कंचन सिंह इन दिनों अपनी प्रेरणादायक कविता “बेटियों से” को लेकर चर्चा में हैं। यह कविता बेटियों के आत्मबल, आत्मविश्वास और स्वाभिमान को समर्पित है, जो विभिन्न साहित्यिक व सामाजिक मंचों पर सराही जा रही है। डीसी कंचन सिंह न केवल प्रशासनिक कार्यों में दक्षता रखती हैं, बल्कि उनके भीतर की संवेदनशील और रचनात्मक अभिव्यक्ति भी उतनी ही प्रभावशाली है। उनकी यह कविता समाज में बेटियों की भूमिका, उनके सपनों और उनकी स्वतंत्र पहचान को खूबसूरती से शब्दों में पिरोती है।
कविता की कुछ प्रमुख पंक्तियाँ:
“कदमों से थामे रखना धरती कठोर;
हौसलों की पाँखों से नापना आकाश !”
“मेरी बेटियों ! जानो कि, तुम्हारी ही धुरी पर घूमता है जीवन;
तुम्हारे ही होने से दुनिया है ख़ास !!”
इन पंक्तियों के माध्यम से डीसी कंचन सिंह ने बेटियों को न केवल प्रोत्साहित किया है, बल्कि उन्हें अपने भीतर छुपी ताकत को पहचानने और खुलकर उड़ान भरने का संदेश दिया है।
बेटियों को चाहिए स्वीकृति, न कि केवल संरक्षण इस कविता में केवल भावनात्मकता नहीं, बल्कि एक सामाजिक दृष्टिकोण भी है। यह रचना इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करती है कि बेटियों को संरक्षण के साथ-साथ समान अवसर, स्वीकृति और आत्मनिर्णय का अधिकार भी मिलना चाहिए। “बेटियों से” शीर्षक वाली यह कविता सराहना बटोर रही है। सोशल मीडिया पर भी यह रचना तेजी से साझा की जा रही है, और लोग इसे एक सशक्त सामाजिक संदेश के रूप में देख रहे हैं।
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