झारखंड में स्ट्रीट वेंडर्स लगातार गैरकानूनी बुलडोज़र कार्रवाई का शिकार हो रहे हैं। यह कार्रवाई न सिर्फ़ स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम 2014 और झारखंड स्ट्रीट वेंडिंग योजना 2017 का सीधा उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र और क़ानून पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
धारा 37 के तहत बेदखली से पहले 48 घंटे का नोटिस ज़रूरी है, लेकिन बिना नोटिस और रात में मारपीट कर कार्रवाई की जा रही है। धारा 38 में जब्ती के समय रसीद देना अनिवार्य है, मगर बिना रसीद सामान उठाया जा रहा है। धारा 39–40 की प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया गया। पिछले 9 साल से पहचान सर्वेक्षण लंबित है, न ID जारी हुई है न CoV। वहीं टाउन वेंडिंग कमेटी (TVC) का कार्यकाल चार साल पहले समाप्त हो चुका है और चुनाव अब तक नहीं हुए।
प्रेस वार्ता में गुजरात, दिल्ली, बिहार, यूपी, राजस्थान और ओडिशा से आए नेताओं ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बताया और राष्ट्रव्यापी आंदोलन की घोषणा की। IHA के संयोजक संदीप वर्मा ने कहा—“यह केवल वेंडर्स पर नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र और क़ानून पर हमला है।”
झारखंड में CPI और AITUC समेत कई संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। CPI राज्य सचिव महेंद्र पाठक ने चेतावनी दी—“वेंडिंग ज़ोन और पुनर्वास के बिना उजाड़नी बंद हो, वरना बड़ा आंदोलन होगा।” CPI जिला सचिव अजय सिंह ने कहा—“9 साल से अधिनियम लागू न होना प्रशासन की विफलता है।” AITUC महासचिव अशोक यादव बोले—“वेंडर्स लोकतंत्र के असली योद्धा हैं, प्रशासन को दमनकारी नीति छोड़नी होगी।”
वेंडर्स संगठनों ने मांग रखी है कि तत्काल सर्वेक्षण कर ID-CoV जारी किया जाए, TVC चुनाव कराए जाएं, बिना नोटिस बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगे, जब्ती प्रक्रिया कानून के अनुसार हो और परंपरागत बाज़ारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
नेताओं ने मीडिया से अपील करते हुए कहा—“यह सिर्फ वेंडर्स का संघर्ष नहीं, बल्कि लोकतंत्र और क़ानून की रक्षा की जंग है। सवाल यह है कि भारत में न्याय अदालतों से तय होगा या बुलडोज़र से?”
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