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रांची के झिरी में फैला है कचरे का अंबार, इसकी कीमत कौन चुकाएगा तुम क्‍या जानों सरकार

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Khabar365news

by: k.madhwan

इस बार रांची स्थित झिरी में कूड़े के पहाड़ को हटाने के लिए लगभग 136 करोड़ रुपए की राशि खर्च किये जाने हैं। रांची नगर निगम ने कचरे को रिसाइकिल करने की योजना तैयार कर ली है। यहां कचरा रिसाइकिल करने का प्लांट लगाया जाएगा। लेकिन ये सिर्फ तैयारी ही है, तैयारी इसलिए क्योंकि कचरे के डिस्पोजल के लिए 12 साल से ही तैयारी चल रही है। मगर अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है।

रांची। रांची के रिंग रोड से गुजरते वक्त जब झिरी आता है, तो कचरे की बदबू से लोगों का हालत खराब हो जाता है। उनके मन में बस एक ही बात आती है कि जल्दी से यहां से पार हो जाए। कार, बस या अन्य वाहनों में चलने वाले लोग तो शीशा बंद कर लेते हैं फिर भी इनके वाहनों के शीशे में सेंध लगाकर दुर्गंध उनके नाको तक पहुंच ही जाती है। मगर दोपहिया या अगल-बगल से गुजरने वाले पैदल यात्रियों का दम घुटने लगता है। इतना ही नहीं इस कचरे के अंबार से अगल- बगल गांव में रहने वाले लोगों की जिंदगी तो बर्बाद हो ही रही है, उनकी सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है।

गौरतलब है कि झिरी में एक महीने के अंदर तकरीबन 18478 टन कचरा जमा होता है। निगम यहां 150 ट्रैक्टर, 200 से अधिक छोटी गाड़ियों, 5 कापैक्टर मशीन और डंपर के जरिए कचरा डंप करता है। कचरे के इस ढेर के कारण झिरी में रहने वाले 10 हजार से अधिक लोगों की जिंदगी नरक बन गई है। इलाके के आसपास जितने भी क्षेत्र हैं, वहां के रहने वाले लोग बिना मच्छरदानी के सो नहीं सकते। हर तरफ मच्छर का अंबार है और अन्य बीमारियां भी होती रहती हैं। इसके अलावा हर वक्त लोगों को कचरे से आने वाली दुर्गंध का सामना करना पड़ता है। इससे लोगों का घरों में रहना भी दूभर हो चुका है।

इस समस्या को उजागर करने के लिए वर्ष 2021 में मॉडल ने किया था कचरे के ढेर पर रैंप वॉक:

रांची की इस समस्या पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मिस झारखंड सुरभि ने इस कचरे के ढेर पर कैटवॉक किया था। ताकि इस समस्या पर नगर निगम और सरकार का ध्यान खींचा जाए।

12 साल से डिस्पोजल की हो रही तैयारी:

रांची स्थित झिरी में कचरे के पहाड़ के डिस्पोजल के दावे पिछले 12 साल से किये जा रहे हैं। सबसे पहले 2010-11 में आई एटूजेड कंपनी ने इस कचरे का डिस्पोजल कर टाइल्स बनाने की बात कही थी। कंपनी को दो साल काम करने के बाद उसकी लापरवाही देखते हुए टर्मिनेट कर दिया गया। इसके बाद 2014-15 में एसेल इंफ्रा ने काम लिया। जिन्होंने इस कचरे से बिजली बनाने की बात कही। करीब डेढ़ साल में इस कंपनी को भी हटा दिया गया। फिर बाद में सीडीसी कंपनी को भी नगर निगम ने डेढ़ साल बाद टाटा बाय बाय कह दिया।

क्या कहता है ठोस कचरा प्रबंधन नियम-2016:

अप्रैल 2016 में 16 साल बाद म्युनिसपल सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स, 2000 की जगह इस कानून को लागू किया गया। नए नियमों के तहत कचरा प्रबंधन के दायरे को नगर निगमों से आगे भी बढ़ाया गया। ये नियम अब शहरी समूहों, जनगणना वाले कस्बों, अधिसूचित औद्योगिक टाउनशिप, भारतीय रेल के नियंत्रण वाले क्षेत्रों, हवाई अड्डों, एयर बेस, बंदरगाह, रक्षा प्रतिष्ठानों, विशेष आर्थिक क्षेत्र, केंद्र एवं राज्य सरकारों के संगठनों, तीर्थ स्थलों और धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर भी लागू किए गए। इन नियमों के समग्र निगरानी के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक केंद्रीय निगरानी समिति भी गठित हुई।

इस नियम के अंतर्गत विभिन्न पक्षकारों यथा– भारत सरकार के विभिन मंत्रालयों जैसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, ज़िला मजिस्ट्रेट, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के कर्तव्यों का उल्लेख भी किया गया है।

कुछ खास बातें जो जाननी जरूरी है:

  1. कोई भी खुद द्वारा या स्वयं उत्पन्न ठोस कचरे को अपने परिसर के बाहर सड़कों, खुले सार्वजनिक स्थलों पर, या नाली में, या जलीय क्षेत्रों में न तो फेंकेगा, या जलाएगा अथवा दबाएगा।
  2. ठोस कचरा उत्पन्न करने वालों को ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ अदा करना होगा, जो कचरा एकत्र करने वालों को मिलेगा।
  3. निर्माण और तोड़-फोड़ से उत्पन्न ठोस कचरे को निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार संग्रहीत करने के बाद अलग से निपटाना होगा।

जन भागीदारी भी है जरूरी:

किसी भी बड़ी समस्या का समाधान तभी संभव है जब देश के आम नागरिक भी खुलकर उसके निदान में भागीदार बनें। यह सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए सरकारों और नीति-नियंताओं के स्तर पर साम-दाम, दंड और भेद जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। अधिसंख्य आबादी को अगर कचरे की समस्या के समाधान से जोड़ना है तो डर, भय, लोभ-लालच दिखाना ही पड़ेगा। तमाम देशों ने इसी इंसानी मनोभावों का फायदा उठाते हुए कूड़े की समस्या का निराकरण किया।

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