झारखंड : झारखंड में कुल 32 आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनमें से उरांव जनजाति शिक्षा और सरकारी योजनाओं के लाभ उठाने में सबसे आगे है। राज्य में उरांव समुदाय की जनसंख्या लगभग 19% है, लेकिन इस समुदाय में 42% लोग स्नातक या उससे उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। इसके चलते इनकी सरकारी योजनाओं में भागीदारी भी सबसे ज्यादा देखी गई है। दूसरे स्थान पर मुंडा जनजाति है, जिसकी जनसंख्या लगभग 14% है। इस समुदाय की शिक्षा और योजनाओं में भागीदारी लगभग 18% के आसपास है, जो उनकी जनसंख्या से ज्यादा है। यह दिखाता है कि मुंडा समुदाय में भी शिक्षा और योजनाओं की पहुंच बेहतर हो रही है।
इसके उलट, झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति संताल की स्थिति काफी चिंताजनक है। राज्य में संतालों की आबादी 31.86% है, लेकिन शिक्षा और सरकारी योजनाओं में उनकी भागीदारी सिर्फ 16.88% ही है। यह अंतर दर्शाता है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद संताल समुदाय शिक्षा और सरकारी लाभों में पीछे है। इसकी एक प्रमुख वजह शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी और सरकारी योजनाओं की जानकारी का अभाव हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि कुछ छोटी जनसंख्या वाले समुदाय भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। खड़िया जनजाति की जनसंख्या केवल 2.27% है, लेकिन उनकी सरकारी योजनाओं में भागीदारी लगभग 6.23% तक पहुंच चुकी है। इसी तरह, हो जनजाति की जनसंख्या 10.74% है और योजनाओं में भागीदारी 8.7% है।
वहीं कुछ जनजातियां जैसे खरवार, लोहरा और भूमिज की स्थिति काफी कमजोर है। इसके अलावा पीवीटीजी (अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह) जैसे सौरिया पहाड़िया, बिरहोर, परहैया और असुर समुदायों में तो स्नातक की संख्या बहुत ही कम पाई गई है। इसका सीधा असर उनकी योजनाओं की पहुंच और जीवन स्तर पर देखा जा सकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में कुल आदिवासी जनसंख्या 86,45,042 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 43,15,407 और महिलाओं की संख्या 43,29,635 है। यह विश्लेषण डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में कार्यरत पूर्व शोधकर्ता नेहा प्रसाद द्वारा किया गया है, जो वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है। इस रिपोर्ट से साफ है कि जनसंख्या ज्यादा होना जरूरी नहीं है, बल्कि शिक्षा और जागरूकता ही सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने की असली कुंजी है।
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