हज़ारीबाग: झारखंड का हज़ारीबाग अब बेरोज़गारी से जूझते युवाओं के लिए सपनों की नहीं, धोखे की ज़मीन बनता जा रहा है। यहां कबूतरबाज़ों का ऐसा नेटवर्क फल-फूल रहा है, जो मासूम युवाओं को विदेश भेजने के नाम पर लाखों की ठगी कर रहा है। ये लोग उन्हें सुनहरे भविष्य का सपना दिखाते हैं, लेकिन हकीकत में उन्हें बेच देते हैं शोषण और अमानवीयता के बाज़ार में। स्थानीय एजेंट गांव-देहात के सीधे-सादे युवाओं को फांसते हैं। दुबई, कतर, मलेशिया और ओमान जैसे देशों में 40 से 80 हज़ार रुपए महीने की नौकरी का वादा करते हैं। इसके बदले उनसे 1.5 से 3 लाख रुपये नकद वसूले जाते हैं। लेकिन जैसे ही वे विदेश पहुंचते हैं, उनके सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं। वर्क वीजा की जगह विज़िट वीजा थमा दिया जाता है, पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाता है और उन्हें 12-14 घंटे की दासता भरी मजदूरी में झोंक दिया जाता है। उसके बाद 40 से 45 लाख रूपए भी वतन वापसी के नाम पर माफिआ द्वारा वसूली जाती है। ये मानव तस्करी है, सीधे-सीधे आधुनिक ग़ुलामी का कारोबार चल रहा है, ऐसा कहना है सामाजिक कार्यकर्ता व नव झारखण्ड फाउंडेशन के क्रेन्दीय अध्यक्ष किशोरी राणा की , जो पिछले कई वर्षों में ऐसे पीड़ित युवाओं को विदेशों से वापस लाने में मदद कर चुके हैं। वे कहते हैं कि इन एजेंटों पर सख्त कार्रवाई नहीं होने की वजह से हज़ारीबाग की पहचान कबूतरबाज़ी हब के रूप में हो जाएगी। सबसे ख़राब स्थिति विष्णुगढ़, बगोदर प्रखंड की है जहां के सैकड़ो युवा कबूतरबाजी के चंगुल में फसें हुए है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह पूरा गिरोह कई बार प्रशासन और राजनीतिक संरक्षण के सहारे चलता है। कुछ एजेंट खुद को ट्रैवल एजेंसी या विदेश नौकरी कंसल्टेंट बताकर अपना ‘कानूनी’ चेहरा दिखाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर एक भयावह जाल बुनते हैं। अब सवाल उठता है कि कब जागेगा सिस्टम? कब तक हमारे नौजवान, मजदूर विदेश जाकर शोषण झेलते रहेंगे? कब तक हज़ारीबाग की ज़मीन इन मानव तस्करों को पनाह देती रहेगी? जिले को चाहिए एक संयुक्त ऑपरेशन और प्रशासन, श्रम विभाग, प्रवासी मंत्रालय और साइबर पुलिस को मिलकर इन गिरोहों को बेनकाब करना होगा। वरना यह ‘कबूतरबाज़ी की फैक्ट्री’ पूरे झारखंड को बदनाम कर देगी।
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