सोनारायठाड़ी /संतोष शर्मा :प्रखंड क्षेत्र मे वट सावित्री पूजा बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। वट वृक्ष के पास सुबह होते ही सुहागिन महिलाएं भिन्न भिन्न प्रकार के पकवान एवं फल मिठाई साथ ही पूजा सामग्री लिए पहुंच गई।
वट सावित्री पूजा के लिए सुहागिन महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी।सुबह से ही वट वृक्ष के नीचे सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु कामना को लेकर पूजा अर्चना व परिक्रमा की, मौली धागा बांधा और अपने पति की दीर्घायु की मंगलकामना की। वट सावित्री सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना करती हैं।
वट सावित्रि पूजा करने आई सुहागिन महिलाओं का कहना है कि आज के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति के लिए कठिन तपस्या कर अपने पति सत्यवान का प्राण वापस लाई थी। तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुहाग की रक्षा के लिए वट वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना करती हैं।
सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ‘राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।’ सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।
जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया, सावित्री ने तीन दिन का उपवास रखा। सत्यवान की मृत्यु के दिन, वह उसके साथ जंगल गई और सत्यवान की मृत्यु हो गई। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपने दृढ़ निश्चय और प्रेम से प्रभावित करके यमराज से तीन वरदान प्राप्त किए।
पहले वरदान में उसने अपने ससुराल वालों के राज्य की वापसी मांगी, दूसरे में अपने पिता के लिए एक पुत्र, और तीसरे में अपने लिए संतान मांगी। यमराज ने वरदान स्वीकार किए और सत्यवान को जीवनदान दिया।
सावित्री वट वृक्ष के पास लौट आई और सत्यवान जीवित हो गया। इस घटना के बाद, महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं ताकि उनके पति की आयु लंबी हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखी बना रहे।
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