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स्व जगरनाथ महतो को श्रद्धांजलि : “टाइगर” कभी मरते नहीं,  वे यादों में, विचारों में और संकल्पों में जिंदा रहते हैं

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आज झारखंड आंदोलन के प्रखर सेनानी, जन-जन के नेता, और राज्य सरकार में पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय टाइगर जगरनाथ महतो की जयंती पर समूचा झारखंड उन्हें नम आंखों से याद कर रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “महान झारखण्ड राज्य आंदोलनकारी, राज्य सरकार में पूर्व शिक्षा मंत्री और सर्वजन के नेता स्व. दादा टाइगर जगरनाथ महतो जी की जयंती पर शत-शत नमन।” लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि राजनीति की यह ऊंचाई जगरनाथ दा को यूँ ही नहीं मिली। इसके पीछे संघर्ष, तपस्या, और जनता के लिए अथक सेवा का एक लंबा रास्ता था।

संघर्षों से निकला एक टाइगर
जगरनाथ महतो का जीवन एक ऐसे जननेता का परिचायक है, जिसने जमीनी राजनीति से उठकर राज्य के उच्च पद तक का सफर तय किया। झारखंड आंदोलन के दिनों से ही उन्होंने बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, शिवा महतो जैसे दिग्गज नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी।
डुमरी विधानसभा क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता इतनी गहरी थी कि वे लगातार चार बार भारी मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1999 में पहली बार चुनाव लड़ने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो उन चुनिंदा नेताओं में से थे जिन्हें “टाइगर” की उपाधि जनता ने दी और वो भी बिना किसी प्रचार के, अपने कर्मों से।

शिक्षा मंत्री के रूप में असाधारण समर्पण
शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को भुलाया नहीं जा सकता। वे स्वयं औपचारिक रूप से अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन शिक्षा को लेकर उनकी प्रतिबद्धता अद्भुत थी। इतना ही नहीं, उन्होंने 11वीं की परीक्षा भी देने की कोशिश की, लेकिन बीमारी के चलते उसे पूरा नहीं कर सके।
अपने मंत्रालय के कार्यों को उन्होंने पूरी लगन और ईमानदारी से अंजाम दिया। पारा शिक्षक हों या आंगनबाड़ी कर्मी, सभी के अधिकारों के लिए उन्होंने आवाज उठाई। उन्होंने रेलवे वेंडरों के पक्ष में आंदोलन कर यह साबित किया कि वह सिर्फ एक नेता नहीं, समाज की आवाज थे।

कोरोना से भी लड़ी लंबी लड़ाई
नवंबर 2020 में जब वे कोविड-19 से संक्रमित हुए, तब उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें चेन्नई में फेफड़ों का प्रत्यारोपण कराना पड़ा। वे कई महीनों तक कोमा में रहे। इस दौरान भी उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे स्वस्थ होकर वापस लौटे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। मार्च 2023 में फिर से तबीयत बिगड़ने पर उन्हें पुनः चेन्नई ले जाया गया, जहां 6 अप्रैल को उनका निधन हो गया। झारखंड जैसे उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में भी जगरनाथ दा की गहरी पैठ थी। झुमरा के जंगलों में सड़कों पर पिकनिक मनाना हो या गांवों में क्रिकेट खेलना—वह आम जनता के साथ जुड़ाव बनाए रखने का हर संभव प्रयास करते थे। उनकी यही सहजता, सादगी और संघर्षशीलता उन्हें “जननेता” से “जनता का परिवार” बनाती थी।

टाइगर की विरासत अमर रहेगी
जगरनाथ महतो के विचार, निष्ठा और सेवा की भावना आने वाले नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी, निर्धारित लक्ष्य हर हाल में हासिल करने की ज़िद।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि परिस्थितियां चाहे जितनी भी विषम क्यों न हों, अगर नीयत साफ हो और हौसला बुलंद हो, तो कोई भी राह कठिन नहीं। जगरनाथ दा की सोच और उनके अधूरे संकल्पों को पूरा करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो केवल एक नेता को नहीं, एक आंदोलनकारी, एक शिक्षक, एक समाजसेवक, और एक इंसान को याद करते हैं जिसने झारखंड को जीया और झारखंड के लिए जिया।

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