Jharkhand

झारखंड में आदिवासियों के सामने ईसाई मिशनरियों के बाद अब मुस्लिम मतांतरण की भी चुनौती

Share
Share
Khabar365news

by: k.madhwan

इन सबके पीछे कहीं सुनियोजित साजिश तो नहीं? क्या NRC हो सकता है इन सभी मसलों का हल? आइए जानते हैं विस्तार से…

Jharkhand: झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ पुरानी और एक जटिल समस्या रही है क्योंकि संथाल परगना प्रमंडल के पांच जिले दुमका, साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा और जामताड़ा का जुड़ाव बंगाल की सीमा से है, जो कभी बंगाल का हिस्सा हुआ करते थे। इन इलाकों के अलग होने के बाद भी आज तक यहां जमीन का सर्वे नहीं हुआ। जिस कारण घुसपैठिए यहां की जमीन पर भी कब्जा जमाए हुए हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां बांग्लादेश से आये लोगों ने यहां के स्थानीय महिलाओं से शादी कर ली और यहीं बस गए। जिससे इनकी पहचान कर पाना अब और भी मुश्किल हो गया है क्योंकि ये मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड व ड्राइविंग लाइसेंस समेत तमाम कागजात बनवा चुके हैं, जो झारखंड सरकार एवं यहां की जनता के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। आलम यह है कि घुसपैठियों की वजह से इन क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव देखने को मिल रहे हैं। यह घुसपैठ झारखंड की आबादी के स्वरूप को किस कदर बिगाड़ रही है, इसकी बानगी तो देखिए। 1961 से 2011 यानी विगत पांच दशकों में झारखंड में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर 142.21 तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 340.35 प्रतिशत रही। वहीं संताल परगना के साहिबगंज में 14.7 प्रतिशत तो पाकुड़ जिले में मुस्लिम जनसंख्या में 13.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि बांग्लादेश के करीब स्थित झारखंड के जिलों में मुस्लिम आबादी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। मसलन, पाकुड़ में 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 प्रतिशत थी जो 2011 में 35.87 प्रतिशत हो गई। और आज 2023 में पाकुड़ की मुस्लिम जनसंख्या लगभग 392,554 पहुंच गई है। लेकिन इस पर नियंत्रण पाना राज्य सरकार के सहयोग के बिना टेढ़ी खीर लगता है। आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर 1994 में झारखंड के साहिबगंज जिले में 17 हजार बांग्लादेशियों की पहचान हुई थी। इनके नाम मतदाता सूची से हटाए गए थे, लेकिन इन्हें वापस नहीं भेजा जा सका था। आज इनकी संख्या में कई गुना वृद्धि हो चुकी है साथ ही प्रतिबंधित संगठनों की स‍क्रि‍यता भी बढ़ती जा रही है।

लव जिहाद के साथ हत्या के आंकड़े चिंताजनक:

झारखंड में लव जिहाद की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हिंदू लड़कियों के साथ रेप और ब्लैकमेलिंग करना अब आम बात हो गई है। हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं और आदिवासियों के प्रति अपराध और शोषण काफी बढ़ गया है। ईसाई मिशनरियों के बाद आदिवासियों के सामने अब मुस्लिम मतांतरण की भी चुनौती विद्यमान है। हाल ही में तीन आदिवासी किशोरियों के मुस्लिम युवकों द्वारा क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया था। साहिबगंज जिले में आदिम जनजाति की रेबिका पहाड़िन नामक युवती की हत्या के बाद उसके शव के 50 टुकड़े कर डालने की वारदात ने हर किसी को दहलाकर रख दिया था। दरिंदगी का ऐसा भयावह मंजर था कि उसकी हड्डियों और मांस के बचे-खुचे टुकड़ों का पोस्टमॉर्टम करते हुए डॉक्टर भी सिहर उठे थे। वहीं दुमका की अंकिता सिंह को जिंदा जला दिया गया एवं एक आदिवासी किशोरी की हत्या करने के बाद उसका शव पेड़ से लटका दिया गया। बोकारो में खुद को हिंदू बताकर नाबालिग लड़की से शादी करने पहुंचे असलम खान से लेकर गढ़वा के अफताब अंसारी द्वारा असली नाम-धर्म छिपाकर एक हिंदू लड़की से शादी रचा लेने जैसी घटनाएं यह सवाल उठा रही हैं कि क्या इन सबके पीछे सुनियोजित साजिश तो नहीं है? बता दें कि झारखंड में कई इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिमों की तादाद तेजी से बढ़ी है। आबादी बढ़ने के साथ उन इलाकों की जनसांख्यिकीय स्थिति भी बदल गई है। जिन-जिन क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी बढ़ी है, वहाँ वे इस्लाम के अनुसार कामकाज करने का दबाव बना रहे हैं। हाल ही में झारखंड के कई इलाकों के सरकारी स्कूलों के नाम बदलने का मामला सामने आया, जहाँ मुस्लिमों की आबादी ज्यादा है। इन इलाकों के सरकारी स्कूलों के नाम बदलकर उर्दू स्कूल कर दिया गया और रविवार की जगह शुक्रवार (जुम्मा) के दिन छुट्टी घोषित कर दी गई।चिंता की बात यह भी है कि इन इलाकों में जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश, पापुलर फ्रंट आफ इंडिया और अंसार उल बांग्ला जैसे प्रतिबंधित संगठनों की सक्रियता बढ़ रही है। पुलिस जांच में यह बात सामने आई थी कि दुमका में किशोरी को जलाकर मार डालने वाले शाहरुख और उसके दोस्त का संबंध अंसार उल बांग्ला से था।

भारतीय और बांग्लादेशी के बीच फर्क कर पाना मुश्किल:

दरअसल बांग्लादेश की लगभग 2,200 किलोमीटर की सीमा बंगाल से सटी हुई है। जिसका सामरिक दृष्टिकोण से एक विशेष महत्व है। बांग्ला भाषा के कारण भारतीय और बांग्लादेशी के बीच फर्क कर पाना कठिन होता है। इसका फायदा उठाकर बांग्लादेश से घुसपैठिए, आतंकी और तस्कर भारत में प्रवेश करते रहे हैं। 1979 में असम के मंगलदोई संसदीय सीट पर पुनर्मतदान के समय मात्र एक वर्ष में ही लगभग 47,000 मुस्लिम मतदाताओं की वृद्धि ने बांग्लादेश से हो रही इस घुसपैठ के प्रति देश का ध्यान खींचा। मुस्लिम घुसपैठ के कारण असम में चले आंदोलन और फिर केंद्र सरकार एवं असम आंदोलनकारियों के बीच 1985 में हुए समझौते के बाद यह मुद्दा न केवल असम, बल्कि राष्ट्र का मुद्दा बन गया। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में गृह विभाग ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से इलाके की बदली हुई डेमोग्राफी के मद्देनजर पूरे राज्य में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप) लागू कराने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। लेकिन 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की मिली जुली सरकार बनी और देखते-देखते यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

झारखंड विधानसभा में भी उठा NRC का मुद्दा :

पिछले वर्ष झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायक अनंत कुमार ओझा के द्वारा इससे जुड़े प्रस्ताव सदन के समक्ष पेश किए गये थे। जिसमें बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर चर्चा भी हुई थी। सदन में कहा गया कि राज्य में विशेष कर संथाल अन्तर्गत साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका तथा जामताड़ा जिले में बांग्लादेशियों की घुसपैठ एक बड़ी समस्या है। इससे यहां की डेमोग्राफी में परिवर्तन हुए हैं और जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है। लेकिन इस दौरान बात बढ़ी तो विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने प्रस्ताव वापसी का दबाव बनाया। जब विधायक ने प्रस्ताव वापस नहीं लिया तो अध्यक्ष ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सदस्यों के मत पर इस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया।

क्या है NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप) :

NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे। भारत में अब तक NRC केवल असम में लागू की गई है, जिसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया गया है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। बता दें कि NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। वर्ष 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए, किंतु उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार किया गया था।दरअसल वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 वर्ष के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे और NRC तैयार करने का निर्णय लिया गया।

Share

Leave a comment

Leave a Reply

Categories

Calender

October 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  







Related Articles
CrimeJharkhandRamgarh

गिद्दी अस्पताल चौक स्थित सरकारी शराब दुकान में अज्ञात चोरों के द्वारा लाखों की समान चोरी की गई

Khabar365newsरामगढ़ जिले के सीमावर्ती क्षेत्र गिद्दी अस्पताल चौक स्थित सरकारी शराब दुकान...

HazaribaghJharkhand

इंडियाज गोल्डन स्टार आइकॉन अवार्ड-2025 में वीरा पुस्तक के लेखक मनीष कुमार सम्मानित

Khabar365newsरांची। रांची के एक होटल में सोमवार को इंडियाज गोल्डन स्टार आइकॉन...

BreakingDHANBADJharkhandझारखंडधनबादब्रेकिंग

पुलिस और प्रिंस खान गिरोह के बीच मुठभेड़, एक अपराधी घायल

Khabar365newsधनबाद : धनबाद जिले के तेतुलमारी थाना क्षेत्र के राजगंज में आज...

BreakingjamshedpurJharkhand

ट्यूशन विवाद को लेकर सैलून में तोड़फोड़, महिलाओं से भी दुर्व्यवहार; दो थानों की पुलिस जांच में जुटी

Khabar365newsजमशेदपुर के साकची कालीमाटी रोड पर सोमवार शाम ट्यूशन में बच्चों के...