आठ साल पुराने नागाडीह मॉब लिंचिंग कांड पर आखिरकार अदालत ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया। बागबेड़ा थाना क्षेत्र में 18 मई 2017 की शाम घटित इस घटना ने उस समय पूरे राज्य ही नहीं, बल्कि देशभर को झकझोर कर रख दिया था। बच्चा चोरी की अफवाह पर उन्मादी भीड़ ने चार निर्दोषों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस भयावह कांड की गूंज दिल्ली से रांची तक हुई थी। अब इस मामले में जमशेदपुर की कोर्ट ने पांच आरोपियों को दोषी करार दिया है, जबकि कई अन्य को बरी कर दिया गया। दोषियों की सजा पर सुनवाई आगामी 8 अक्टूबर को होगी।
जमशेदपुर कोर्ट के न्यायाधीश विमलेश सहाय की अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान राजाराम हांसदा, गोपाल हांसदा, सुनील सरदार, तारा मंडल और रंगो पूति को दोषी पाया। वहीं, विभीषण सरदार, बाबू सरदार, डॉक्टर मार्डी जगतवार्डी, डॉक्टर टडू और सुभाष हांसदा समेत कई आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया। गौरतलब है कि इस कांड में दर्जनों लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था, जिसमें से कई के खिलाफ आठ साल तक सुनवाई चली।
18 मई 2017 की शाम जुगसलाई नया बाजार निवासी गौतम वर्मा और उनके छोटे भाई विकास वर्मा नागाडीह पहुंचे थे। वहां ग्रामीणों ने उनसे पहचान पत्र मांगा। विकास वर्मा के पास आधार कार्ड न होने पर विवाद शुरू हो गया। इसी दौरान उनकी दादी रामसखी देवी और दोस्त गंगेश गुप्ता भी मौके पर पहुंच गए। विवाद ने अफवाह का रूप ले लिया। ग्रामीणों के बीच बच्चा चोरी की आशंका फैल गई।
पुलिस की मौजूदगी में भीड़ बेकाबू हो गई। चारों को जीप से उतारकर पहले बेरहमी से घसीटा गया और फिर ईंट-पत्थरों से हमला कर उनकी जान ले ली गई। गौतम, विकास और गंगेश की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि घायल रामसखी देवी ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। यह हत्या किसी एक परिवार पर नहीं, बल्कि पूरे समाज पर हमला था। नागाडीह की सड़कों पर उस शाम इंसानियत को भीड़ की नफरत ने रौंद दिया था।
फैसले के बाद पीड़ित परिवार ने अदालत के फैसले पर नाराजगी जताई। परिजनों का कहना है कि चार निर्दोष लोगों की हत्या के लिए सिर्फ पांच लोगों को दोषी ठहराना न्याय के साथ मजाक है। उन्होंने कहा कि दर्जनों लोगों ने इस वारदात में हिस्सा लिया था, लेकिन सिर्फ कुछ को सज़ा देना न्याय अधूरा है। पीड़ित परिवार अब इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है।
उस समय नागाडीह मॉब लिंचिंग ने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किये थे। भीड़ की हिंसा और अफवाह की राजनीति ने सरकार और प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया था। चार शवों के सामने न्याय की उम्मीद में खड़े परिजनों की तस्वीरों ने पूरे देश को विचलित कर दिया था। यह कांड झारखंड में मॉब लिंचिंग की सबसे भयावह घटनाओं में से एक माना जाता है।
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