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कहानी आम का पेड़ और वो बच्चा: लेखक संदीप कौशल

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एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वह आम के पेड़ के पास पहुंच जाता। पेड़ के ऊपर चढ़ता, आम खाता, खेलता और थक जाने पर उसी की छाया में सो जाता.

उस बच्चे और आम के पेड़ के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड़ के पास आना कम कर दिया। कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड़ उस बालक को याद करके अकेला रोता। एक दिन अचानक पेड़ ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा – तू कहां चला गया था? मैं रोज तुम्हें याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनों खेलते हैं।
बच्चे ने आम के पेड़ से कहा- अब मेरी खेलने की उम्र नहीं है, मुझे पढ़ना है, लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नहीं हैं।
पेड़ ने कहा- तू मेरे आम लेकर बाजार में बेच दे, इससे जो पैसे मिलेंगे उससे अपनी फीस भर देना।
उस बच्चे ने आम के पेड़ से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमों को लेकर वहां से चला गया। उसके बाद फिर कभी दिखाई नहीं दिया। आम का पेड़ उसकी राह देखता रहता।
एक दिन वह फिर आया और कहने लगा, अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मुझे मेरा अपना घर बनाना है, इसके लिए मेरे पास अब पैसे नहीं हैं।
आम के पेड़ ने कहा – तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा, उससे अपना घर बना ले। उस जवान ने पेड़ की सभी डाली काट ली और लेकर चला गया। आम के पेड़ के पास अब कुछ नहीं था वह अब बिल्कुल बंजर हो गया था। कोई उसकी ओर देखता भी नहीं था। आम के पेड़ ने भी अब यह उम्मीद छोड दी थी कि वह बालक /जवान उसके पास आयेगा।
फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बूढ़ा आदमी आया। उसने आम के पेड़ से कहा- शायद आपने मुझे नहीं पहचाना। मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।
आम के पेड़ ने दु:ख के साथ कहा – पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं तुम्हें दे सकूं।
वृद्ध ने आंखों में आंसू लिए कहा – आज मैं आपसे कुछ लेने नहीं आया हूं, बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरकर खेलना है, आपकी गोद में सर रखकर सो जाना है। इतना कहकर वह आम के पेड़ से लिपट गया और आम के पेड़ की सूखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
इस कहानी के माध्यम से यह प्रेरणा देने का प्रयास किया गया है कि आम का पेड़ कोई और नहीं हमारे माता-पिता हैं। जब हम छोटे थे तो उनके साथ खेलना अच्छा लगता था। जैसे-जैसे बड़े होते चले गये, हम उनसे दूर होते चले गये। पास भी तब आये जब कोई जरूरत पड़ी, कोई समस्या खड़ी हुई।
आज कई माँ बाप उस बंजर पेड़ की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे हैं। जाकर उनसे लिपटें, उनके गले लग जायें, फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा। फिर से वो अपने आप को मजबूत महसूस करने लगेगें!उनकी सारी बीमारियाँ और तकलीफ दूर हो जाएगी

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